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मान्ध्र-साम्राज्या [१११ संस्कृत भाषाका भपूर्व व्याकरण कातन्त्र' भी एक मामिाहन रानाके लिये रचा गया था ! हने हैं कि यह भी एक जैनाचार्यकी कृति थी। जैन विद्यालयोंमें इसका पठनपाठन भाज भी होता है। लोगों : बदिकधर्म साथ-साथ बौद्धधर्म और मनधर्मका भी
प्रचार था। मामाजिक संस्थायें प्रायः पुदुर धर्म। दक्षिण देश जैमी ही थीं।' कालकाचार्यक
थन में प्रगट है कि पैनके गजा वह गुरु थे। जैन मुनियों और मार्यिकानों का भावगमन राजपासादये भी था : गजा मोर प्रजाको जैन गुरु धर्मकी शांति और मुखकर शिक्षा दिया करने थे। उनका धर्मापक बकाया भी था। यही वजह है कि गौतमीपुत्र और हाल विषय अनुमान किया जाता है कि वे जैनधर्मानुयायी होगय थे. माध्रदेश मधन • नो.पनों और उत्यकामोंमे परिपूर्ण था। प्रतिप्रिय जनों का ध्यान हम देशके सौन्दर्यकी ओर आकृष्ट हुमा । टन संध वहा पहुंचे और अपनीअपनी पनिक' स्थापित कर बस गये । माग देश जैन मंदिरोंसे अलंकृत और जन मुनियों धर्मापदेशमे पमित्र होगया।
9-" The Aodhra os Sutavahana rule is characterised b: almost the same social features as the further south; bie in point of religion they seem to have been great patrons of the Jains and Buddhists."-S. Krishnaswani Aiyan. gor in the Ancient India, page :4.
२-साई., मा. २ पृष्ट ८९।