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________________ - २५४] संक्षिप्त जैन इतिहास । नैन अहिंसा है जो हर हालतमें प्राणीवपकी विरोधी है और एक व्यक्तिको पूर्ण शाकाहारी बनाती है। उस समय वैदिक मतावलंबियोमें मांसभोजनका बहुपचार था और बौद्धलोग भी उससे परहेन नहीं रखते थे। म० बुद्धने कई वार मांसभोजन किया था और वह मांस खास उनके लिये ही लाया गया था। अतएव अशोकका पूर्ण निरामिष भोजी होना ही उसको जैन बतलाने के लिए पर्याप्त है। इस अवस्थामें उसे जन्मसे ही जैनधर्मशा श्रद्धानी मानना अनुचित नहीं है। जैन ग्रन्थोंमें उसका उल्लेख है और जैनोकी यह भी मान्यता है कि श्रवणवेलगोलामें चन्द्रगिरिपर उसने अपने पितामहकी पवित्रस्मृतिमें चंद्रवस्ती मादि जैन मंदिर बनवाये थे। ___राजाबलीकथा में उसका नाम भास्कर लिखा है और उसे अपने पितामह व भद्रबाहु स्वामीके समाधिस्थानकी वंदनाके लिये श्रवणवेल्गोल आया बताया है। (जैशि सं०, भूमिका ट०६१) अपने उपरान्त जीवनमें मालूम पड़ता है कि अशोकने उदारवृत्ति ग्रहण करली थी और उसने अपनी स्वाधीन शिक्षाओंका प्रचार करना प्रारंभ किया था जो मुख्यतः जैन धमके अनुसार थी। यही कारण प्रतीत होता है कि जैन ग्रंथोंमें उसके शेष जीवनका हाल नहीं है। जैन दृष्टिसे वह वैनयिक-रूपमें मिथ्यात्व ग्रसित हुआ कहा जासका है; परन्तु उसकी शिक्षाओंमें मैनत्व कूटर कर भरा हुआ मिलता है। उसने पौडों, ब्राह्मणों और भाजीविकोंके साथ - १-भमवु० पृ० १७.। २-राजावलीकथा और परिशिष्ट पर्व. (पृ. ८७) ३-हिवि० भा० ७ पृ० १५० ।
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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