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________________ २४६] संक्षिप्त जैन इतिहास । यद्यपि ई० पू० २७७ में भागया, परंतु उसका राज्याभिषेक इसके चार वर्ष बाद सन् २७३ ई० पू० में हुमा था। इन चार वर्षों तक वह युवराजके रूपमें राज्य शासन करता रहा था। इस मदधि तक रानतिलक न होनेका कारण कोई विद्वान् उसका बड़े माईसे झगड़ा होना अनुमान करते हैं; परंतु यह बात ठीक नहीं है। मालम ऐसा होता है कि उस समय अर्थात सन् २७७ ई. पू० में अशोककी अवस्था करीब २१-२२ वर्षकी थी और प्राचीन प्रथा यह थी कि जबतक राज्यका उत्तराधिकारी २९ वर्षकी अवस्थाका न होजाय तबतक उसका राजतिलक नहीं होसका था यद्यपि वह राज्यशासन करनेका अधिकारी होता था। इसी प्रथाके अनुरूप जैनसम्राट् खारवेलका भी राज्य मभिषेक कुछ वर्षे राज्यशासन युवराजपदसे कर चुकने पर २५ वर्षको अवस्थामे हुमा ग। मशोकके संबंधमें भी यही कारण उचित प्रतीत होता है। जब वह २५ वर्षके होगये तब उनका अभिषेक सन् २७३ ई. पू० में हुआ। और उनका मदभुत राज्य शासन सन २३६ ई० पू० तक कुशलता पूर्वक चला था। विन्दुसारके समयमें अशोक उत्तर पश्चिमीय सीमा प्रान्त और अशोफ तक्षशिला व पश्चिमी भारतका सुवेदार रह चुका था। . उज्जनीका सूवेदार। इन प्रदेशोंका उसने ऐसे अच्छे ढंगसे शासन-प्रबंध किया था कि इसके सुप्रबन्ध और योग्यताका सिका १-कोई विद्वान विन्दुसारकी मृत्यु सन् २७३ ई० पू० और मशोकका राज्याभिषेक सन २६९ ई०पू० मानते है । (माइ० पृ० ६७-६८) २-लाभाइ०, पृ० १७०। -अविमोसो० भा०:३ पृ. ४३८ । ४-जविभोसो. भा० ! पृ० ११६ ।
SR No.010473
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 02 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages92
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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