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अन्य राजा और जैन संघ। [५९ काष्ठानगरमे एक समय और संभवतः उक्त नागवंशके राज्य कालमें ही जैनधर्मका प्रभाव विशेप था। वहांका जैनसंघ आज भी भारतके विभिन्न स्थानोंमें फैला हुआ है। यह भी संभव है कि उक्त नागवंशके राजा जैन संघके पोषक हों । संभवतः इसी कारण वहाका संघ खूब फूला फला था। मथुरासे उत्तर पूर्वकी ओर पाचाल राज्य था। उसकी राज
धानी प्राचीन कालसे कापिल्य थी। जैनोंके पांचाल राज्यमें जैनधर्म तेरहवें तीर्थङ्कर श्री विमलनाथजीका जन्मस्थान व दानवीर भवड़ । और तपोभूमि भी यही नगर था। विक्रमकी
पहली शताब्दिमें यहांपर तपन नामक राजा राज्य करता था। उसी समय भावड़ नामक एक धर्मात्मा जैन सेठ यहां रहते थे। यह एक प्रतिष्ठित धनी व्यापारी थे। इनका व्यापार देश-विदेशसे होता था । जहाजोंमे माल भेजा जाता था। एक दफे दुर्भाग्यसे इनके सारे जहाज समुद्रमें डूब गये। इससे उनके व्यापारको वडा धक्का लगा। किन्तु वह धीरजसे व्यापार करते रहे। एक घोड़ीसे इनके भाग चमक गये । वहांके राजाने तीन लाख रु० में उस घोड़ीको भावड़से खरीद लिया था। उसके वछेड़को भावड़ने विक्रम राजाको भेट किया। राजाने प्रसन्न होकर उन्हें महुआ आदि कई ग्राम दिये। भावड़ उन ग्रामोंका नायक बन गया। उनकी भावला नामक स्त्रीसे उनको भवड नामक पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई। १८६७के लिखे हुए एक गुटकेमें काष्ठासंघकी रीतिया काष्टादि देशकी कहीं गई हैं (काष्ठासंघश्चिरंजीयाक्रिया काष्ठादि देशकः) अतः काष्ठा नाम देश अपेक्षा ही है।
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