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सम्राट् खारवेल ।
[ ५३ २ के राजाको खारवेल बतलाते है ।' हिन्दू पुराणोंमें आन्धवंगी राजाओंके समसामयिक राजवंशोंमे एक 'गर्दभिल' भी बताया गया है, जिसके कुल सात राजा थे । खारवेल शातकर्णि प्रथमका समकालीन था और कलिंगमें मौर्योके बाद उनके वंशने ही राज्य किया था । अतएव उक्त भिलवंश अथवा गर्दभिलवंशको खारवेलके राजवंशका द्योतक मानना उचित है । मम० जायसवाल इस शव्दकी उत्पत्ति खारवेल नामसे ठहराते है । खारवेलसे खरवेल हुआ, खर और गर्दभ संस्कृतमे पर्यायवाची एक ही अर्थके शब्द है । और वेल शब्द भिल्लमें पलट दिया गया । इस रूपमें खरवेलसे ' गर्दभिल्ल या 'गर्द भिल' शव्द बन गया । जिनसेनाचार्यने इन्हीं राजाओंका उल्लेख रासभ राजाओंके नामसे किया है।
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इस वंशके अंतिम राजा खर भिल द्वितीय (खरवेल द्वितीय) ही उज्जैन के गर्दभिल्ल अनुमान किये गये हैं क्योंकि दोनोंका समय एक है और वह विक्रमादित्य के श्वसुर थे । विक्रमादित्य गर्द भिल्लका उत्तराधिकारी माना ही जाता है। काल्काचार्यने इसी गर्दभिल्ल वंशके विरुद्ध शकोंको भेजा था । अतः इस उल्लेखसे खारवेलके राजवंशका राज्य उसके बाद पांच पीड़ियों तक रहा प्रमाणित होता है । 'प्राची' महात्म्य' नामक पुस्तकमें एक चित्र नामक व्यक्तिका वर्णन है । विद्वज्जन उसको खारवेलका दादा अनुमान करते हैं । उसकी पत्नी
१ - जविओोसो० भा० १६० १९९ - १९६ । २ - जविओोसो०, भा० १६ पृ० ३०३ । ३ - जविओोसो० भा० १६५० ३०६-३०७१ ४ - जविओोसो० भा० १६ पृ० ३०५ ।
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