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५२] संक्षिप्त जैन इतिहास । खारवेलकी आयु करीव ३७ वर्षकी थी। खारवेल जैसे पराक्रमी वीर अवश्य ही इस समय हृष्टपृष्ट होंगे । अत. उनका सन् १७० ई० पू०से और १०-२० वर्ष और राज्य करना बहुत कुछ सभव है। हमारे विचारसे जब खारवेलके सुपुत्रकी अवस्था २४ वर्षकी होगई तव सन् १५२ ई० पू० मे खारवेलका राज्य कार्यसे विलग होजाना प्राकृत सुसंगत है। इस समय वह वृद्ध होचले थे और यह भी संभव है कि उन्होंने जिन दीक्षा ग्रहण करली हो। जो हो, मि० जायसवाल जो उनका स्वर्ग वास काल सन् १६९-१५२ ई० पू० मे मानते है, वह ठीक है । खारवेलके उत्तराधिकारी उनके सुपुत्र हुये थे। संभवत उन्हींका उल्लेख खंडगिरीकी एक गुफाके शिलालेखमे है। उसमे उनको कलिङ्गाधिपतकुदेप श्री खर महामेघवाहन लिखा है । जबिओसो० भा०३ पृ० ५०५) यह भी जैनधर्मानुयायी थे। खारवेलके बाद कलिङ्गके इस प्रसिद्ध राजवंशका कुछ पता
नहीं चलता, किन्तु भुवनेश्वरके एक संस्कृत खारवेलका वंश गर्द- ग्रंथमे मौर्योके पश्चात् जिस राजवंशने कलिभिल्ल वंश है। झमे राज्य किया था, उसका परिचय 'भिल'
वंशके नामसे दिया है। इस वंशमे कल सात राजा हुये थे, जिनके नाम क्रमानुसार इस प्रकार है:-(१) ऐर मिल, (२) खर मिल, (३) सुर मिल, (४) नर भिल, (५) दर भिल, (६) सर मिल और (७) खर मिल द्वितीय । उक्त ग्रन्थमें जो समय इस वंगके राज्यकालका दिया है उससे पता चलता है कि ई० पू० ८९ मे इस वंशका अंत होगया था। विद्वान लोग इस वंशको खारवेलसे सम्बन्धित बतलाते है तथा उक्त राजाओंमे नं०