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४०] संक्षिप्त जैन इतिहास। गोग्यगिरिको जीनकर जब खारवेल मगधने लौटकर आये,
नो वहाक वृद्ध शासक पुष्यमित्रने मगधकी मगधपर आक्रमण व रक्षाका विगेप प्रवध किया । ' अपने लड़कों महान विजय । नाग उन्होंने राज्य स्थापित किया अर्थात्
स्वय सम्राट् न हुए, उपराजाओ या गवर्नरों द्वारा मुल्क और वर्मक नाममे स्वय अपनेको सिर्फ मेनापति कहने हुये राज्य करने लगे । मगधमा प्रानिक शासक पुष्यमित्रके आठ बेटोंमेसे एक अर्थात् बृहस्पतिभित्र नियुक्त हुआ। पुप्यमित्रने फिरसे अश्वमेध मनाया ! मालम होता हे कि खारवेलको यह सहन न हुआ। उसपर उन्हें मगध विजय करके ' चक्रवर्ती पद पाना ग्रंप था । इस लिये अपने पहले आक्रमणसे चार वर्ष बाद ही उन्होंने फिर आक्रमण कर दिया। उत्तरापथके राजाओंको जीतते हुये वह मगधमे जा निकले । हिमालयकी तलहटी २ वह ठीक मगधकी गजवानीके सामने जा पहुचे थे । गगाको उन्होंने कलिङ्गके बडे २ हाथियों के सहारे पार कर लिया था । इस मार्गमे उन्हें सोन नदीके भयानक दल-दलोंका कष्ट नहीं उठाना पड़ा था । फलत वह पाटलिपुत्रमे दाखिल होगये और नन्दोंके समयके प्रख्यात् राजमहल * सुगन' के सामने जा डटे थे । बृहस्पतिमित्र खारवेलकी पराक्रमी सेनाके सम्मुख टिक न सका। खारवेलने उससे अपने पैरोकी वन्दना कराई । नदराजा द्वारा लाई गई जिन मूर्तिया वे मगधसे वापस कलिङ्ग लेगये तथा मगधके तोगकखानेसे अग मगधक रत्न प्रतिहारों समेत उठा लेगये । वस्तुत खारवेलकी यह महा विजय थी और इसके उपलक्षमे कलिग लौटकर खारवेलने जैनधर्मका एक महा धर्मा