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________________ ३८ ] संक्षिप्त जैन इतिहास | आक्रमण । खारवेलका मगधपर भी उल्लेख हैं कि उन्होंने पाड्य देशके राजाओम भेट प्राप्त की थी । अतएव यह कहना होगा कि खारवेलने दक्षिणापथ ( दक्षिण भारत ) पर अपना सिक्का जमा लिया था और उन्हे एक मात्र उत्तरापथ (उत्तर भारत ) को विजय करना शेष रहा था। उस समय भारतवर्ष के साम्राज्य- सिहासनपर चढ़नेकी कामना चार आदमियोंको थी । अर्थात् ( १ ) मगधके शुंगवंशीय ब्राह्मण पुप्पमित्र. (२) आध्रवंशी शातकणि प्रथम, (३) अफगानिस्तान और वाल्हीकका यवन राजा ढमेत्रिय (Demeter100) और (४) स्वय खारवेल । इनसे शातकर्णिको तो खारवेल परास्त कर चुके थे । वस. उनके लिये पुष्पमित्र और दमेत्रियसे बाजी लेना बाकी था । पुष्पमित्रने 'अश्वमेध' यज्ञ करके चक्रवर्तीपट पाया था । खारवेलके समान पराक्रमी और धर्मवत्सल राजाके लिये यह सहन करना सुगम नहीं था कि उनके जीतेजी एक अन्य राजा ' चक्रवती' कहलाये और अश्वमेधादिमे पशु हिसा करता रहे, जब कि मौर्यकालसे अहिसा धर्मकी भारत प्रधानता रही हो । अतएव खारवेलने मगधपर धावा बोल दिया । इसी समय दमेत्रिय पटनाको घेरे हुये था । और वह भारत - विजय करनेकी अपनी कामनामे प्राय सिद्धार्थ होचुका था । किन्तु खारवेल ज्योही झारखंड-गया से होते हुये मगध पहुंचे और राजगृह तथा गोरथगिरि के दुर्गों से अतिमको सर कर लिया कि दमेत्रिय खारवेलकी चढ़ाईका हाल सुनकर तथा अपने खास राज्यमे विद्रोहका उपद्रव उठते देख पटना, साकेत, पंचाल आदि छोडता हुआ मथुरा भागा और मध्य देश
SR No.010472
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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