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सम्राट् खारवेल ।
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कलिङ्गमे वापस आकर खारवेलने फिर जन साधारण के हितकी
सुध ली। उन्होंने तनसुतिय स्थानसे एक नहर निकलवाकर अपनी राजधानीको तरसब्ज बना लिया । प्रजाको भी इस नहरसे सिचाईका बडा सुभीता हुआ । यह नहर उस समय से तीन सौ वर्ष पहले नन्दराजाके समय में बनवाई गई थी । उसीका पुनरुद्धार करके खारवेल उसे अपनी राजधानी तक बढ़ा लाये थे | अपने राज्य के छंठ वर्षमें उन्होने दुखी प्राणियोंकी अनेक प्रकार से सहायता की थी और पौर एवं जानपद संस्थाओं को अगणित अधिकार देकर प्रसन्न किया था ।
यह निश्चित रूपसे नहीं कहा जामक्ता कि खारवेलका विवाह
तनसुतिय नहर व
जनपद संस्था ।
व पुत्र लाभ ।
कब हुआ था, किन्तु यह स्पष्ट है कि उनके खारवेलकी रानियां दो विवाह हुये थे । उनको दोनों रानियोंके नाम शिलालेखमें मिलते है । एक बजिरघरवाली कही जाती थी और दूसरी सिंहपथकी सिधुडा नामक थीं । वजिरघर अब मध्यप्रदेशका वैरागढ़ है । खारवेलके समयमे वहांके क्षत्री प्रसिद्ध थे । उन्हींकी राजकुमारीके साथ खारवेलका विवाह हुआ था । एक उड़िया काव्यमें इस घटनाका उल्लेख अनोखी कल्पना किया गया है, जिसमें राजकुमारीकी वीरताको खूब दर्शाया गया है । इन्हीं वजिरघरवाली रानीसे खारवेलको अपने राज्यके सातवें वर्ष में संभवतः एक पुत्ररत्नकी प्राप्ति हुई थी । उड़िया काव्यसे प्रगट है कि खारवेलने दक्षिण भारतको भी विजय किया था । खारवेलके शिलालेखमें