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१७२] संक्षिप्त जैन इतिहास । श्रेष्टी वहा रहते थे। उन्होंने श्री वृषभदेवका एक सुन्दर मंदिर वनवाया था और भगवानकी दर्शनीय प्रतिमा प्रतिष्ठा कराकर विगजमान कराई थी। माथुरान्वयी श्री छत्रसेनाचार्यने उसकी प्रतिष्ठा कराई थी। यह नागर जैनी तलपाटकपत्तनके निवासी थे। इनके पूर्वजोंमे 'अंबर' नामक व्यक्ति एक प्रसिद्ध वैद्य थे। जैन वासनासे वह इतने अनुवासित थे कि उनकी रग २ मे जैनधर्म व्याप्त था। वह देशव्रती थे और चक्रेश्वरी देवी उनकी सेवा करती थी। झरोली (सिरोही) के श्री गातिनाथ मंदिरके शिलालेखसे प्रगट है कि परमार राजा धारावर्षकी रानी शृगारदेवीने सं० १२५५ मे उक्त मंदिरको भूमिदान किया था । ( मप्राजैस्मा० पृ० १६९) राजपूतानेमे चौहान राजाओंने पांचवीं शताब्दिके लगभग
अजमेरको बसाकर उसे अपनी राजधानी अजमेरके चौहान बनाया था। अजमेरके चौहानोंमे जैनधर्मका राजा व जैनधर्म। आदर रहा था। इस वंशके चौथे राजा जय
राजका उल्लेख जैन ग्रंथ 'चतुर्विशतिप्रवन्ध' मे है । इस वंशके राजाओंका उल्लेख वीजोल्या ( मेवाड़) के जैन शिलालेखमे खूब दिया हुआ है । वीजोल्याका पंचायतन पार्श्वनाथ मंदिर एक अतिशय क्षेत्र है। वहा मंदिरके वाहर भट्टारकोंकी निषधिकायें भी है। जिनसे पता चलता है कि एक समय यह स्थान जैनोंका मुख्य केन्द्र था। पहले दिगम्वर संप्रदायके पोरवाड़ महाजन लोलाकने यहां पार्श्वनाथजीका तथा सात अन्य मंदिर वनवाये
१-जैहि०, भा० १३ पृ० ३३२ । २-भाप्रारा० भा० १ पृ० २२५-२२९ ।