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उत्तरी भारतके अन्य राजा व जैनधर्म। [१७१ ९१८ के मिले है, जिनमे प्रगट होता है कि 'उसने अपने सञ्चारित्रसे मरु, माड, वल्ल, तमणी, अज्ज (आर्य ) एवं गुजरत्राके लोगोका अनुराग प्राप्त किया, वडणाणय मण्डलमे पहाडपरकी पल्लियों (पालों, भीलोके गावो) को जलाया, रोहित्सकूप (घटियाले) के निकट गावमें हट्ट (हाट) बनवाकर महाजनोको वसवाया,
और मड्डोअर ( मंडोर ) तथा रोहिन्सकूप गावोमे जयस्तभ स्थापित किये । कक्कुक न्यायी प्रजापालक एवं विद्वान था । और संस्कृतमें काव्य रचना करता था। उसके लेखके प्रारम्भमे श्री जिननाथ ( जिनेन्द्रदेव ) को नमस्कार किया गया है और उसमे एक जैन मंदिर बनवानेका उल्लेख है । इस कारण इस राजाका जैन धर्मानुयायी होना प्रगट है। सं० १२०० के लगभग नाडौलके चौहान राजाओंने मंडोरपर अधिकार जमा लिया था। मालवेके परमार राजा वाक्पतिराजके दूसरे पुत्र डम्बरसिहके
वंशमे वागड़के परमार है। उनके अधिकावागड़ प्रांतमें जैनधर्म । रमे वांसवाडा और डूंगरपुरके राज्य थे।
उनकी राजधानी उत्थूणक नगर (अथूर्णा ) था। यहांके संवत ११६६ के एक जैन शिलालेखसे प्रगट है कि वागड़ प्रातमें भी जैनधर्म अच्छी उन्नत दशापर था । सं० ११६६ में परमार वंशी विजयराजका राज्य था। नागरवंशी भूषण नामक जैन
१-राइ०, भा० १ पृ० १५१-१५२ । २-ॐ सग्गापवग्गमग्गं पदम सयलाण कारण देव । णीसेस दुरिमदलणं परमगुरु णमह जिणणाहं |'-प्राचीन लिपिमाला, पृ० ६५ । ३-भाप्रारा०, भा० १ पृ० १७४।