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गुजरातमें जैनधर्म व श्वे० ग्रन्थोत्पत्ति। [१३९ था। उनके इन वीरोचित कार्योका बखान वई कवियों और भाटोने किया है । जैनधर्मके लिये भी इन दोनों भाइयोने जीतोड़ परिश्रम किया था। सन् १२२० में शत्रुजय और गिरनारजीके लिये संघ निकाल कर उनने 'संधपति' की पदवी प्राप्त की थी। कहते है कि इस संघमे इक्कीस हजार श्वेतांबर जैन और तीनसौ दिगम्बर जैनी .. सम्मिलित थे। सन् १२२८ में जगचंन्द्र नामक एक श्वेताम्बराचार्यने तपा
गच्छकी स्थापनाकी थी। वस्तुपालने इस आबुके जैनपंदिर । गच्छकी उन्नतिमें बड़ी सहायता की । इन
दोनों भाइयोंने मंदिर, पौषधशालायें, उपाश्रय आदि बनवाये थे । आबूपर्वत पर उन्होने बडा बढिया मंदिर वनवाया था, जिसको सोभनदेव नामक प्रसिद्ध कारीगरने बनाया था। यह मंदिर विमलगाहके मंदिरके सन्निकट है और सन् १२३० में बनकर तैयार हुआ था। यह अपने भास्कर कार्यके लिये भुवनविख्यात् और अद्वितीय है। वस्तुपालने गिरनार और शत्रुजय पर भी जैनमंदिर बनवाये थे। वस्तुपाल एक अच्छे कवि भी थे। उनका उपनाम 'वसन्तपाल''
था। उनकी रचनाओंकी प्रशंसा उस समय वस्तुपालका अतिम के अच्छे २ कवियोंने. कीथीन 'नरनारायणाजीवन। नन्द' उनकी उत्तम रचना है। वस्तुपालके
निकट अन्य कवियोने भी आश्रय पाया था। १-सडिजै०, पृ० ४७-६० । २-हिस्ट्री ऑफ इन्डियन एण्ड ईस्टर्न आर्किटेक्चर भा० २ पृ०३६ ।
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