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१३०] संक्षिप्त जैन इतिहास । कैलम्बगजने इनको अर्धाग दे मरक्षण किया। फिर प्रतिष्ठानपुर, उज्जयनी आदि स्थानोंमे कुछ समय विताकर वह नागेन्द्रपत्तनमे अपने बहनोई कण्हढेवके पाम रहे। रेलम्बराजकी सहायतासे इन्होंने राज्याधिकार प्राप्त किया था । राजपुरोहित देवश्रीने इनका राज्या‘भिषेक किया था। राजा होने पर कुमारपालने इन सवका समुचित आदर किया था। अलिङ्ग कुम्हार उनके राजदरबारका मुसावि नियत हुआ था। इस समय कुमारपालकी अवस्था पचास वर्ष के लगभग थी । इनका जन्म सन् १०९३ मे दधिस्थली (देवस्थली) में हुआ था । यहीं श्वेताबराचार्य हेमचन्द्रजीसे इनने सदुपदेश ग्रहण किया था। कुमारपाल राजा हो गये, परन्तु पुराने राजदरवारी इनके
खिलाफ रहे। फलत. इनने उनका निराकण कुमारपालकी साम्राज्य किया । कण्हदेवने कुमारपालको राजा बनावृद्धि। नेमे पूरी सहायता दी थी, इस कारण वह
इनको कोई चीज ही नहीं समझता था। कुमारपालने उसे सावधान किया, परन्तु वह नहीं माना । आखिर उनने उसे गिरफ्तार कराके उसकी आखें निकलवालीं। सिद्धराजने एक छहड नामक व्यक्तिको गोद लेकर उसे अपना पुत्र प्रगट किया था। कुमारपालके राजा होनेसे वह रुष्ट होकर सपादलक्ष पहुंचा और वहा अरणोगजने उसे आश्रय दिया था। और उसके लिये उसने कुमारपालमे लडाई भी लडी, किन्तु उसमे उसकी हार हुई।
१-सडिजे०, पृ० ५, हिवि०, भा० ५ पृ० ८३ व वप्रा जैस्मा० पृ० २०८-२०९।
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