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गुजरातमें जैनधर्म व खे० ग्रन्योत्पत्ति। [१२९ अमरचन्द्रमूरिका बडा आठर किया था । और उन्हें क्रमश 'व्याघ्रशिशुक' व 'सिहशिशुक' नामक उपाधियोसे विभूपित किया था । ये दोनों श्वेताम्बराचार्य बड़े भारी नैयायिक थे। इनके शिष्य हरिभद्रसूरि द्वितीय नागेन्द्र गच्छीय थे । इनकी प्रमिद्धि " कलिकाल गौतम" के नामसे थी।' इनके दो शिष्य हम और परमहंस नामक जैनधर्म प्रचार करते हुये भोटादेशमें (तिव्बतमे। बौद्धोद्वारा मार डाले गये बताये जाते है । जयसिह सिद्धराजकी मृत्यु सन् ११४३ ई० मे हुई थी। 'सिद्धराजके कोई पुत्र नहीं था। किन्तु भीम प्रथमकी एक
प्रेमिकासे उत्पन्न पुत्र हरिपालकी संतान इस सम्राट् कुमारपाल। समय मौजूद थी। इस कारण त्रिभुवनपाल
और उसके तीन लडके जिनमें सबमे वडे कुमारपाल थे, राज्य पानेके प्रयत्न करने लगे और अन्तमें कुमारपाल चालुवयवंशका राजा हुआ। कोई कुमारपालको सिद्धराजका भाग्नेय बतलाते है । कुमारपालकी एक वहिन प्रमलदेवीका विवाह सिद्धराजके सेनापति कण्हदेवसे हुआ था और दूसरी वहिन देवल सपादलक्षके राजा अरणोगजको विवाही गई थी। सिद्धराजकी मन्ना नहीं थी कि कुमारपालको राज्य मिले । उसने त्रिभुवनपालको मरवा डाला और कुमारपालको मरवानेके भी उसने प्रयत्न किये, किन्तु अनहिलपट्टनके आलिङ्ग नामक कुम्हारकी सहायतासे कुमारपालकी रक्षा हुई । वह भृगुकच्छको भाग गया। कैलम्बपत्तन (Camhav) में
१-हि०, भा० १० पृ० ३४० । २-सडिज०, पृ०३, ३-हिवि०, मा० ५ पृ० ८३ ।