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गुजरातर्मे जैनधर्म व श्वे० ग्रन्थोत्पत्ति। [१२७ और यह 'प्रश्नवाहनकुल, कोटिवगण, मध्यमशाखा, स्थूलिभद्र मुनिवंगे हर्षपुरीय गच्छक जयसिहसूरीके शिष्य थे। इनने कितनेही ब्राह्मणोंको जैनधर्ममें दीक्षित किया था।
सौराष्ट्रके खेशार और सकम्मरिके पृथ्वीराजचौहानसे आदर पाया था । अजमेरमें इनका स्वर्गवास हुआ था । कर्णका उत्तराधिकारी उनके पुत्र सिद्धराज जयसिहने सन् २०१४ - ११४३ तक राज्य किया। मुंजाल और संतु इसके भी मंत्री रहे थे । सिद्धराज एक बड़ा बलवान, धार्मिक व दानी राजा था। यह सोमनाथ महादेवका भी भक्त था । इसे मंत्रशास्त्र भी ज्ञात था; जिसके कारण इसको 'सिद्धचक्रवर्ती' कहते थे । सिद्धपुरमें सरस्वती नदीके किनारे इसने 'रुद्रमाल' नामक एक वृहद् शिवालय और जैन तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामीका मंदिर बनवाया। इसने वर्द्धमानपुर (वधवान)में सौराष्ट्र राजा नोधनको विजय किया तथा सोरटदेश लेकर सज्जनको अधिकारी नियत किया । सज्जनने श्री गिरिनारमे नेमिनाथजीका जैन मंदिर बनवाया। सिद्धराजको जैनधर्मसे भी प्रेम था। उसने श्री शत्रंजयजीकी यात्रा करके, श्री आदिनाथजीको १२ ग्राम भेंट किये थे।
सिद्धराजने एक संवत् भी चलाया था। मालवाके राजा नरवर्मा परमार तथा यशोवर्मा परमारसे इसका एक युद्ध लगभग १२ वर्ष तक हुआ था । अंतमें सन ११३४ में सिद्धगज विजयी हुआ था। तबसे इसका नान 'अवन्तिनाथ' प्रसिद्ध हुआ था। वर्बर
१-डिजेबा०, पृ० ८।२-प्राजैस्मा०, पृ० २०६ । ३-हिवि०, मा० ७ पृ० ५९४ । ४ - बप्राजैस्मा०, पृ० २०६। ५-ईऐ०, भा० ६ पृ० १९४।
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