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संक्षिप्त जैन इतिहास |
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थी । राष्ट्रकूटवशकी गुजरातवाली शाखामे इन्द्रका उत्तराधिकारी कर्क प्रथम (८१२-८२१) हुआ था, जिसने नौसारी (सूरत) के एक जैन मंदिरको अम्बापातक नामका ग्राम भेट किया था । सन् ९१० ई० के लगभग राष्ट्रकूटवंशकी इस शाखाका अंत होगया था । सन ९७२ ई० मे गुजरात पश्चिमी चालुक्य राजा तैलप्पके अधिकार में चला गया ।
गुजरात में चावडवंशका राज्य भी सन् ७२० से ९६१ तक रहा था। पहले चावड सरदार पंचासर ग्राममे राज्य करते थे । सन् ६९६ मे जयशेखर चावडको चालुक्य राजा भुवडने मार डाला । उसकी रूपसुदरी नामक स्त्री गर्भवती थी । इसीका पुत्र वनराज था, जिसने अनहिलवाडा वसाया और अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करके सन् ७४६ से ७८० तक राज्य किया । वनराज जैनधर्मानुयायी था । इसने पंचासर पार्श्वनाथजीका जैन मंदिर बनवाया था | वनराजका उत्तराधिकारी उसका भाई योगराज हुआ और उसके पश्चात् चार राजाओंने इस वंशमे सन् ९६१ तक राज्य किया था । वनराजका मुख्य मंत्री चम्पा नामक जैन श्रेष्ठी - था, जिनका व्यापार अफरीका व अरबसे खूब चलता था, उन्होंने
चावड़ राजाओंके जैनकार्य ।
१ - इऐ०, भा० १२ पृ० १३ - १६ - यह जैनमुनि अर्ककीर्ति श्री - कीर्त्याचार्यके अन्वय में थेः । श्री यापनीय नेमिसघपुनागवृक्षमुलगणे श्री कीर्त्यचर्यान्वये ॥” २ - बप्रा जैस्मा० पृ० २०० । ३ - भाप्राए० - भा० ३. पृ० ७५ । ४ - बप्राजेस्मा ०, पृ० २०२-२०३ ।