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हर्षवर्धन और चीनी यात्री हुएनत्सांग। [१११ हुएनत्सांगने उस समय भारतमें एक व्यवस्थित शिक्षा प्रणा
लीका अच्छा परिचय कराया है। वह कहता तत्कालीन शिक्षा है कि बालकोंको शिक्षा 'सिद्धम् ' नामक प्रणाली। प्राइमरी पुस्तकसे प्रारन की जाती थी। जव
बालक सात वर्षके होते थे तो उन्हें 'पंचशास्त्रों का ज्ञान कराया जाता था। इसमे सर्व प्रमुख व्याकरण था। बादमें साहित्य और कला सिखाई जाती थी। तीसरे शास्त्रके अनुसार आयुर्वेदका अध्ययन कराया जाता था। चौथेमे न्यायशास्त्र
और सबके अन्तमें दर्शनशास्त्रकी शिक्षा दीजाती थी। यह शिक्षा प्रायः सब ही संप्रदायोंके गृहस्थोके लिये प्रचलित थी। पठन-पाठनकी प्रणाली मौखिक थी। अध्यापकगण बडे परिश्रमसे पढ़ाते थे। हैवेल सा० कहते है कि भारतीयोंकी यह शिक्षा प्रणाली आजकलके शिक्षाक्रमसे कहीं अच्छी थी।'
१-हिमारूइ०, पृ० १९७।