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९६] संक्षिप्त जैन इतिहास । तत्कालीन धर्म व सब ही राजकीय अथवा अन्य दान जैन और साहित्य ! बौद्ध सस्थाओंको दिये जाते थे। ब्राह्मण वर्गकी
मान्यता तबतक न कुछ थी।' कितु गुप्तकालमे ब्राह्मणोका भाग्य चमका था। गुप्तराजाओंकी राजधानी ब्राह्मण धर्मका केन्द्र वन गई और नवीन वैदिक धर्मका पुनरुत्थान होगया । इतनेपर भी जनसाधारणमे जैन और बौद्ध धर्मोकी प्रधानता अक्षुण्ण रही थी। जैन मठोंमे उच्चकोटिकी शिक्षाका प्रबन्ध प्राय देशभरमे था। इन तीनों धर्मो के विद्वानोंमे परस्सर सा भी खूब थी, जैसे कि पहले लिखा जाचुका है। ब्राह्मण वर्गकी मुख्य भाषा संस्कृत थीं। कितु जैनों और बौद्धोंके ग्रन्य अव भी प्राकृत
और पाली भाषाओंमें थे। राज्यका संरक्षण पाकर इस समय सस्कृ तका प्रचार और महत्व बढ रहा था । बौद्धोंने भी संस्कृतमे ग्रन्थ रचना प्रारम्भ कर दी थी और उनकी देखादेखी जैनोंने भी सस्कृ तको प्रधानता दी थी, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि इस समयके पहले जैनोंमे संस्कृत रचनाओका अभाव था।
इस समयके ग्रन्थोंमे मुख्य विषय तर्क और न्याय था। विद्वानोंमे परस्पर वाढ होते थे। सिद्धसेनदिवाकरके समान चतुर्दश विद्या
१-हिमारूइ०, पृ० १४७ ।
२-हिमारूइ०, पृ० १५६।गुप्तकालमें संस्कृत भाषाका अधिक प्रचार हुआ। कवि कालीदास नामक कोई कवि इसी समय हुए थे। अमरकोष, आर्यभट्टका गणित शास्त्र, वराहमिहिरका ज्योतिष प्रथ और धन्वतरिका वैद्यक विज्ञान इसी समयकी रचनायें हैं।
३-जैहि०, भा० १९ पृ० १५६ ।