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गुप्त साम्राज्य और जैनधर्म । [९३ विक्रमादित्यका ही राज्य था। अत. सभव है कि चन्द्रगुप्त द्वितीयका प्रेम जैनधर्मके प्रति था । यह तो प्रमाणित ही है कि बौद्धों
और जनोंके साथ उसका वर्ताव अच्छा था। जैन ग्रंथोंमे कथा है। कि जैनाचार्य मिद्धमेन दिवाकरने ' अवन्ती' के महाकालके मंदिरमें एक अतिशय दिखाकर विक्रमादित्य राजाको जैन धर्मानुयायी बनाया था। स्व० महामहोपाध्याय डा० शतीशचन्द्रजी विद्याभूषणने. विक्रमादित्यके दरबारके नौ कबिग्लोमे परिगणित क्षपणकको सिद्धसेन ही प्रगट किया है और यह विक्रमादित्य चंद्रगुप्त द्वितीयके अतिरिक्त और कोई नहीं है। विक्रम संवतके प्रचारक विक्रमादित्य इनसे भिन्न ईसाकी प्रथम शतालिमे हुये थे। प्रसिद्ध कवि कालिदास भी उन्हींके समयमे हुये थे। मालम होता है कि वराह मिहिरके समकालीन कालिदास दृमरे थे।
सिद्धसेनका समय भी ईसाकी चौथी शताब्दि प्रगट होता है । अतः यह होसक्ता है कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्यको भी सिद्धमेन दिवाकरने उनके राज्यके अतमे जैनी बनालिया हो।' चंद्रगुप्तकी मृत्युके बाद सन् ४१३ ई० में उसका पुत्र कुमार
गुप्त राजसिहासनपर आरूढ हुआ था। 'गुप्तवंशके अतिम राजा। उसने अश्वमेध यज्ञ किया था। उसके
राज्यमें हूण लोगोंने भारतपर हमला किया था और सन् ४५५ मे वह उनके साथ लढ़ाई में मारा गया।
१-भाइ० पृ०९१ । २-वीर, वर्ष १ पृ० ४७१ । ३-अलाहाबाद युनीवर्सिटी स्टडीज भा० २ (The date of Kandas)! ४-वीर वर्ष १ पृ० ३३५ व पृ० ४७१।
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