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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर |
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ज्ञाविक क्षत्री और भगवान महावीर
ई० पूर्व० ६२० ई० पूर्व ५४५ ।
लिच्छिवियोंके साथ वज्जि प्रदेशके प्रजातंत्रात्मक राजसंघमें
ज्ञात्रिक वंशी क्षत्री भी सम्मिलित थे । इन ज्ञात्रिक क्षत्री | क्षत्रियों को 'नाय' अथवा 'नाथ' वंशी भी कहते हैं ।" दिगम्बर जैन शास्त्रोंमें इनका 'हरिवंशी ' रूपमें भी उल्लेखहुआ है । मनुने मल्ल, भल, लिच्छिवि, करण, खस व द्राविड़ क्षत्रियों के साथ नाट अथवा नात (ज्ञात्रिक) क्षत्रियोंको व्रात्य लिखा है | ( मनु० स० १०/२२ ) यह इसी कारण है कि इन लोगों में जैनधर्मकी प्रधानता थी । व्रात्य अथवा व्रतिन् नामसे जैनियों का उल्लेख पडले हुआ मिलता है। (भ० पा० प्रस्तावना, ४०३२) भारत धार्मिक इतिहास में नाथ अथवा ज्ञात्रिक क्षत्रियों का नाम अमर हैं । इनका महत्व इस से प्रकट है कि यही वह महत्वशाली जाति. है जिसने भारतको एक बड़े भारी सुधारक और महापुरुषको समर्पित किया था । महापुरुष जैनियोंके अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर थे।
आधुनिक साहित्यान्वेषणसे प्रगट हुआ है कि ज्ञात्रिक क्षत्रि-शात्रिक क्षत्रियोंका योंका निवासस्थान मुख्यतः वैशाली (बसाढ़), निवासस्थान । कुण्डग्राम और वणिय ग्राममें था । कुण्डग्रामसे उत्तर-पूर्वीय दिशामें सन्निवेश कोल्लाग था । कहते हैं कि यहां ज्ञात्रिक अथवा नाथवंशी क्षत्री सबसे अधिक संख्या में रहते थे। वैशाली के बाहिर पाप्त ही में कुण्डग्राम स्थित था; जो संभ
१ - खक्षदाए ३०, पृ० ११५ - ११६ । २ - वृजेश०, पृ० ७ ३-उ० ६०, २-२ फुटनोट । ४- उद० २१४ फुट० ।