SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिच्छिवि आदि गणराज्य। [४३ नहीं रही और उनने अशोककी आधीनता स्वीकार कर ली थी। गुप्तकाल तक इनके अस्तित्वका पता चलता है। वजियन प्रजातंत्र के उपरान्त दूसरा स्थान शाक्यवंशी क्षत्रिशाक्य और मल क्षत्रि. योक प्रजातंत्रको प्राप्त था। उनकी राजधानी योंके गणराज्य । कपिलवस्तु थी, जो वर्तमानके गोरखपुर जिलेमें स्थित है । नृप शुद्धोदन उस समय इस राज्यके प्रमुख थे। म० गौतमबुद्धका जन्म इन्हकि गृहमें हुआ था। शाक्योंकी भी सत्ता उस समय अच्छी थी; किन्तु उपरान्त कुणिक अजातशत्रुके समयमें विट्ठदाम द्वारा उनका सर्व नाश हुआ था। शाक्यों ने बाद मल्ल गणराज्य प्रसिद्ध था, जिसमें मल्लवंशी क्षत्रियोंकी प्रधानता थी। बौद्ध ग्रन्थोंसे यह राज्य दो भागोंमें विभक्त प्रगट होता है । कुसीनारा जिस भागकी राजधानी थी, उससे म० बुद्धका संबंध विशेष रहा था। दूसरे भागकी राजधानी पावा थी । उससमय राजा हस्तिपाल इस राज्यके प्रमुख थे । भगवान महावीर जिस समय यहां पहुंचे थे, तब इस राजाने उनकी खूब विनय और भक्ति की थी। भगवानने निर्वाण-लाभ भी यहीसे किया था। उस समय अन्य राजाओंके साथ यहांके नौ राजाओंने दीपोत्सव मनाया था। जैनधर्मकी मान्यता इन लोगोंमें विशेष रही थी। शाक्य प्रजातंत्र भी जैनधर्मके संसर्गसे मछूता नहीं बचा था। ऐसा मालम होता है कि राजा शुद्धोदनकी श्रद्धा प्राचीन जैनधर्ममें थी। लिच्छिवियोंकी तरह मल्लोंको भी मजातशत्रुने अपने आधीन कर किया था। १-पूर्व, पृ० १३६ । २-अदि इ० पृ. ३७-३८ । ३-क्षत्रीक्लैन्स पृ० १६३ व १७५। ४-ममबु० पृ. ३७ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy