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________________ ३०] संक्षिप्त जैन इतिहास । गणराज्य 'वृजि अथवा वज्जि' नामसे भी प्रसिद्ध था। इस राज्यमें सम्मिलित हुई सब जातियां आपसमें बड़े प्रेम और स्नेहसे रहती थी, जिसके कारण उनकी आर्थिक दशा समुन्नत होनेके साथ २ एता ऐसी थी कि जिसने उन्हें एक बड़ा प्रभावशाली राज्य बना दिया था। मगधके बलवान राना इनपर वहत दिनोंसे आंख लगाये हुये बैठे थे किन्तु इनकी एकताको देखकर उनकी हिम्मत पस्त -होजाती थी। अंतमें मगध के राजा अजातशत्रुने इन लोगोंमें आपसी फूट पैदा करा दी. थी और तब वह इनको सहज ही परास्त कर सका था। ऐक्य अवस्थामें उनका राज्य अवश्य ही एक मादर्श • राज्य था वह प्रायः आजकलके प्रजातंत्र ( Republic ) राज्यों के समान था । जहांगर लिच्छिवि-गण दरबार करते थे, वहाँपर उनने . 'टाउनहॉल' बना लिये थे, जिन्हें वे 'सान्यागार' कहते थे। वृजि-राजसंघमें जो जातियां सम्मिलित थीं, उनमें से सदस्य चुने जाकर वहां भेजे जाते थे और वहां बहुमतसे प्रत्येक आवश्यक कार्यका निर्णय होता था। बौद्ध ग्रन्थ इस विषयमें बतलाते हैं कि पहिले.उनमें एक 'भासन पश्चाप' (आसन-प्रज्ञापक) नामक अधिकारी चुना जाता था, जो अवस्थानुसार आगन्तुकों को मापन बतलाता था। उपस्थिति पर्याप्त हो जानेपर कोई भी भाव• श्यक प्रस्ताव संघले सम्मुख लाया जाता था। इस क्रियाको 'नाति' (ज्ञाप्ति) कहते थे।. नात्तिके पश्चातः प्रस्तावकी मंजूरी ली जाती थी अर्थात उसपर विचार किया जावे या नहीं। • यह प्रश्न एक दफेसे-तीन दफे तक पुछा जाता था। यदि १-माइ पू. ५९ ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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