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‘लिच्छिवि आदि गणराज्य। [२९. लिच्छिवि आदि गणराज्छ ।
ई० पू० ६ वीं शताब्दि। उस समय जिस प्रकार उत्तरीय भारतमें मगधपाम्राज्य अपने जीरो स्वाधीन और पराक्रमी राजाओं के लिये प्रसिद्ध
प्रजातंत्र राज्य। था, उसी प्रकार गणराज्यों अथवा प्रजातंत्र राज्योम वैशालीका लिच्छिवि वंश प्रधान था। यह बात तो आज स्पष्ट ही है कि प्राचीन भारतमें प्रजातंत्र राज्य थे। हिंदुओंके महाभारतमें ऐसे कई राज्योंचा उल्लेख आया है। बौडोंकी जात कथाओंमें भी उससमय ऐमी राजसंस्थाओंकी झलक मिलती है। नैनों के शास्त्र भी इस बातका समर्थन करते हैं। इन प्रजातंत्र राज्योंकी राज्य व्यवस्था नागरिक लोगोंकी एक सभा द्वारा होती थी, निसका निर्णय वोटों द्वारा होता था। तिनके डालकर सब सभासद वोट देते थे और बहुमत सर्वमान्य होता था । वृद्ध और अनुभवी पुरुषोंको राज्य प्रबंधक कार्य सौंपे जाते थे और उन्हीं से एक प्रभावशाली व्यक्ति सभापति चुन लिया जाता था । यह सब राना कहलाते थे।
वैशाली के लिच्छिवि क्षत्रियों का राज्य ऐसा ही था। उस-- वैशाली के लिच्छिाव समय इनके प्रजातंत्र राज्यमें आठ नातियां क्षत्रियों को प्रजातंत्र सम्मिलित थीं। विदेहके क्षत्री लोग भी
राज्य । इस प्रनातंत्र राज्यमें शामिल थे, जिसकी राजधानी मिथिला थी। लिच्छिवि और विदेह राज्योंका संयुक्त
-माइ०, पृ० ५८-५९ । २-श्वे० कल्पसूत्र (१२०) में काशीकौशल, लिच्छवि और मल्लिक गणराज्यों का उल्लेख है। दि. जैन ' शानोंसे भी यह सिद्ध है । भमबु० पृ० ६५-६६ |
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