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शिशुनाग वंश। प्रति उसका विशेष अनुराग ही उसकी मृत्युका कारण हुमा था। एक राजकुमार जिसके पिताको उदयनने राजभ्रष्ट कर दिया था, राजमहलमें एक जैनमुनिका वेष भरकर पहुंचा था और उसने इसको मार डाला था । यह घटना भगवान महावीरके निर्वाणसे साठ वर्षे वाद घटित हुई अनुमान की गई है। भगवान महावीरका निर्वाण ई० पूर्व ५४५ में माननेसे, दर्शकका राज्य ई० पू० ५१८ से ४८३ तक और उदयनका ४८३ से ४६७ तक प्रमाणित होता है । ( नविओसो० भाग १ पृष्ठ ११६)
हिन्दु पुराणों के अनुसार उदयन के उत्तराधिकारी नन्दिवर्द्धन नाल्टिन और और महानन्दिन थे; किन्तु उनके विषयमें
महानन्दिन्। विशेष परिचय नन्दवंशके इतिहासमें है। उनके नामों में 'नन्दि' शब्दको पाकर, कोई २ विद्वान उन्हें नन्दवंशका अनुमान करता है.। उपरान्तके श्वेताम्बर ग्रंथ भी इस बातका समर्थन करते हुए मिलते हैं। उनमें लिखा है कि उदयन्के. कोई पुत्र नहीं था; इप्सलिये एक नन्द नामक व्यक्तिको जो एक नाईके सम्बन्धसे वेश्या पुत्र था, लोगोंने राजा नियत किया था। इसका रानमंत्री कल्पक नाम जैनधर्मका बढ़ श्रद्धानी थी। किन्तु इस कथाको सत्य मान लेना कठिन है। मालम ऐसा होता है कि
हिन्दु पुराणों में महानन्दिनकी शूद्र वर्णकी (संभवतः नाइन ) एक . रानीके गर्भसे महापद्मनन्दका जन्म हुआ लिखा है, उसी आधारसे शिशुनागवंशका अंत उदयनसे करके उपरोक्त कथाकारने नन्द
नामक व्यक्तिको वेश्यापुत्र लिख मारी है किन्तु उदयगिरिके हाथी--केहिहं० पृ० १६४ । २-अहिह पृ० ११।३-हिछि जे०पू०४३॥
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