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२६] संक्षिप्त जैन इतिहास । जैन राजा था। उसके राज्यमें जैनधर्मका खूब विस्तार हुआ था।'x
कुणिककी एक मूर्ति भी मिली है और विद्वानों का अनुमान है कि उसकी एक बांह टूटी थी । यही कारण है कि वह 'कुणिक' कहलाता था ( जविओतो. भा० १ पृष्ठ ८४ ) कणिक राज्यकालमें सबसे मुख्य घटना भगवान महावीरजीके निर्वाण लाभको घटित हुई थी। इसी समय अर्थात् १४५ ई० पूर्वमें अवन्तीमें पालक नामक राजा सिंहासनपर आसीन हुमा था। म० बुद्धका स्वर्गवास भी लगभग इसी समय हुआ था। (जविओप्सो० भाग १ पृष्ठ ११५)
कुणिक अजातशत्रुके पश्चात मगधके राज्य सिंहासनपर उसका दर्शक और पुत्र दर्शक मथवा लोकपाल अधिकारी हुआ था। 'उदयन् । “किन्तु इसके विषयमें बहुत कम परिचय मिलता है। 'स्वप्नवासदत्ता' नामक नाटकसे यह वत्सराज उदयन् और उनैतीपति प्रद्योतनके समकालीन प्रगट होते हैं। प्रद्योतन्ने इनकी कन्याका पाणिग्रहण अपने पुत्रसे करना चाहा था। दर्शकके बाद ई० पू० सन् .६९३में अजातशत्रुका पोता उदय अथवा उदयन् मगधका राजा हुआ था। उसके विषयमें कहा जाता है कि उसने पाटलिपुत्र अथवा कुसुमपुर नामक नगर बताया था । इस नगर में
उसने एक सुंदर जैनमंदिर भी बनवाया था, क्योंकि उदयन भी . अपने पितामहकी भांति जैनधर्मानुयायी था। कहते हैं कि नैनधर्मक
xकहिं पृ. १६१ अजातशत्रुने अपने शीलवतन्नामकरभाईको भी बीवधर्मविमुख बनाने के प्रयल किये थे। (मसाब२६/) ३-अहि०, पृ० ३९ ॥ ३ महि० पू० ४८ -हिलि १० ११०४३॥