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मौर्य साम्राज्य। [२९३ कालसे और खासकर श्री शङ्कराचार्यनीके समयसे ही खुब धधकी थी।
साम्प्रदायिकताका उद्गम यद्यपि भारतमें बहुत पहले होचुका था, परन्तु उसमें कट्टरता बादमें ही आई थी। अशोकके नामसे जो लेख मौजूद हैं, वे उसके धर्म और पवित्रताके भावसे लबालब भरे हुए हैं। उनसे स्पष्ट है कि अशोक एक बड़ा परिश्रमी उद्योगी और प्रजाहितैषी राजा था। यही कारण है कि उसके इतने दीर्घकालीन शासन-काल में एक भी विद्रोह नहीं हआ था। प्रनाकी शिक्षा-दीक्षाका उसे पूरा ध्यान था। वस्तुतः इतने विशाल साम्राज्यका एक दीर्घकाल तक बिना किसी विद्रोहके रहना इस बातका पर्याप्त प्रमाण है कि अशोकके समयमें सारी प्रजा बहुत सुखी और समृद्धिशाली थी। वह साम्प्रदायिकताको बहुत कुछ भुला चुकी थी। अशोकके उस बड़े साम्राज्यके सार-समालके योग्य उनका कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था। इसी कारण उनके साम्राज्यका पतन हुआ था। धर्मप्रचार उसमें मुख्य कारण नहीं था। प्रत्युत जिस रानाने राजनीतिमें धर्मको प्रधानता दी उसका राज्य रामराज्य होगया और इतिहासमें उसका उल्लेख बड़े गौरवसे हुआ। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक, हर्षवईन, कुमारपाल, अमोघवर्ष, मकघर इत्यादि ऐसे ही आदर्श सम्राट थे। सन् २३६ ई० पू०के लगभग अशोककी मृत्यु हुई थी।
.. यह निश्चय रूपमें नहीं कहा जासक्ता ... अशोकके उत्तराधिकारी। कि उसकी जीवनलीला किस स्थानपर . समाप्त हुई थी। उसके बाद उसका बेटा कुणाल ई० पृ० २३६
१-बैग. मा० १४ पृ० ४५...। २-जविभोसो० भा० १. पृ० ११६ ।