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संक्षिप्त इतिहास |
योंको भारतवर्षकी सीमाओंसे बाहर निकाल दिया था और यूनानियोंसे अफगानिस्तान वर्ती एरियाना प्रदेश भी ले लिया था । यूनानी राजा सेल्यूकसने विनम्र हो अपनी कन्या भी चन्द्रगुप्तको भेंटकर दी थी । इस प्रकार जबतक तत्त्वज्ञानकी लहर विवेक भावसे भारतवसुंधरा पर बहती रही, तबतक इस देशकी कुछ भी हानि नहीं हुई, किन्तु ज्योंही तत्त्वज्ञानका स्थान साम्प्रदायिक मोड़ और विद्वेषको मिलगया, त्योंही इस देशका सर्वनाश होना प्रारंभ होगया । हूण अथवा शकलोगोंके माक्रमण, जो ऊपरान्त भारतपर हुये उनमें उन विदेशियोंको सफलता परस्पर में फैले हुये इस साम्प्रदायिक विद्वेषके कारण ही मिली। और फिर पिछले जमाने में मुसलमान, आक्रमणकारी राजपूतोंपर पारस्परिक एकता और संगठन के अभाव में विजयी हुये । वरन् कोई नहीं कह सक्ता है कि राजपूतों में वीरता नहीं थी । अतएव व्याध्यात्मिक तत्त्वके बहुप्रचार होने से इस देशकी हानि हुई ख्याल करना निरीह भूल है ।
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आजसे करीब ढाई हजार वर्ष पहिले भी भारतकी आकृति प्राचीन भारतका और विस्तार प्रायः आजकल के समान था ।
स्वरूप । सौभाग्य से उससमय सिकन्दर महान के साथ आये हुये यूनानी लेखकों की साक्षी से उस समय के भारतका आकारविस्तार विदित होजाता है | मेगास्थनीज कहता है कि उस समयका भारत समचतुराकार (Quadrilateral ) था । पूर्वीय और दक्षिणीय सीमायें समुद्र से वेष्टित थीं; किन्तु उत्तरीयभाग हिमालय पर्वत (Mount Hemodos ) द्वारा शाक्यदेश ( Skythia ) से प्रथक कर दिया गया था। पश्चिम में भारत की सीमाको सिंधुनदी