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________________ - २५८] संक्षिप्त जैन इतिहास । हैं कि पिंजरापोल संस्थाका जन्म जैनोंद्वारा हुआ है और मान भी नैनोंकी ओरसे ऐसी कई संस्थायें चल रही हैं।' माशोने कई वार जनों की तरह 'अमारी घोष (अभयदानकी घोषणा ) कराई थी। सारांश यह है कि अशोषको पशुरक्षा पूरा ध्यान था। कोई विद्वान् कहते हैं कि पशुरक्षाको उसने इतना महत्व दिया था कि उसके निकट मानवसमाजकी भलाई गौण थी। यह ठीकसा ही लाञ्छन है जैसा कि आज जनोंपर वृथा ही आरोपित किया जाता है; किन्तु इसे अशोककी प्रवृत्ति जनों के समान थी, यह प्रकट होता है। अशोकने मानवोंकी भलाई के कार्य भी अनेक किये थे। उनकी जीवनयात्रायें धार्मिक कार्योको करते हुए व्यतीत हों, इमलिये अशोकने उनको धर्मशिक्षा देने का खाप प्रान्त किया था। प्राणदण्ड पाये हुये वीके जीवनको भी भविष्य सुखी बनाने लिये उनने उसको धर्मोपदेश मिलनेका प्रबन्ध किया था। नपा. पके लिये पश्चाताप और उपवास करने से मनुष्य अपनी गति सुधार सक्ता है। जैनधर्ममें इन बातोंपर विशेष महत्व दिया गया है। अशोक भी इन हीकी शिक्षा देता था। उसने केवल मन. प्यक परभवका ही ध्यान नहीं रखा था। वह जानता था कि धर्म पारलौकिक और लौकिकके भेदसे दो तरहका है। एक श्रावस्के लिये यह उचित है कि वह दोनों का अभ्यास सुचारु रीतिसे भरे। अशोकने अपनी शिक्षाओंसे धर्मके इस भेदछ। पूरा ध्यान रखता। -अशो. पृ० ४९-५० । २-अध• पृ० १६३-१६७-पंचम शिलालेख । ३-अध० पृ. ३३: । ४-२००३10-प्रथम स्तम्म लेख।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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