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मौर्य साम्राज्य। [२४३ है। किन्तु उनके समान एक न्यायशील और धर्मात्मा राजाने अवश्य ही धर्मके लिये कोई ठोस कार्य किये होंगे, यह मान लेना ठीक है। इतना तो कहा जाता है कि दक्षिणके जैनतीर्थ 'श्रवणबेलगोलके पाप्त जो गांव है उसको सम्राट चंद्रगुप्तने ही वसाया था । अजैन विद्वान भी कहते हैं कि उन्होंने दक्षिण भारत के श्री शालम् प्रांतमें एक नगरको जन्म दिया था। मालूम होता है कि वह उस ओर जब अपना साम्राज्य-विस्तार करते हुए पहुंचे थे, तब उक्त जैन तीर्थकी वन्दना की थी और वहांपर एक ग्रामकी जड़ जमाई थी। उपरांत यह ग्राम जैनधर्मका मुख्य केन्द्र हुआ और अब भी है। भले ही चंद्रगुप्त के अन्य धर्म कार्यों का पता मान न चले; किन्तु जैनधर्मके इतिहाप्समें उनका नाम और उनका राज्य अवश्य हो प्रमुख स्थान प्राप्त किये रहेगा। इसका कारण है कि उनके समयमें ही जैनधर्मका पूर्णश्रुत व्यक्षिप्त हुआ था और नेन संघमें दिगम्बर एवं श्वेतांबर भेदकी जड़ भी तब ही नमी थी। अशोकके समयमें संकलित हुए बौद्ध शास्त्रोंसे भी इसी समयके लगभग जैन संघमें मतभेद खड़ा होने का समर्थन होता है। (भवतु। Z० २१३) दि. जैन शास्त्र कहते हैं कि सम्राट चंद्रगुप्तने होकर अशोक था। उनका समय ३७२ ई० पू० ठीक है । हिन्दू, बौद्ध
और जैन श्रोतोसे यही प्रमाणित होता है" (देखो हिवि० भा० १५० ५८७) यदि ३७२ ई० पू० चन्द्रगुप्तका समय माना जाय तो भद्रबाहुका समय ६० पृ० ३८३ उनके समयसे करीब २ आ मिलता है। किन्तु अशोकके लेखों में जिन विदेशी राजाओंका उल्लेख है, उनका समय इतना प्राचीन है कि अशोकको सिकन्दरका ममकालीन माना जावे।
१-ममैप्राजस्मा० पृ. २०५ । २-ऐहि० मा० ९ पृ० १९ ।