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________________ २३६] संक्षिप्त जैन इतिहास । को माहार देते थे। उनके एकसे अधिक रानियां थीं। रानी सुप्रभा उनमें प्रधान थी। एक रानी वैश्य वर्णकी थी, जिसका भाई पुप्पगुप्त गिरनार प्रांतका शासक था। उस समय राजाके निकट सम्बंधियोंको विविध प्रांतों में शासक नियत करने का रिवान था। तीसरी रानी विदेशी यवन राना सिल्यूकसकी पुत्री थी। यवन लोगोंको यद्यपि आन म्लेच्छ समझते हैं, किन्तु मालूम होता है, उस समय उनके साथ विवाह सम्बंध करना अनुचित नहीं समझा जाता था। - इन तीन रानियों के अतिरिक्त उनके और भी कोई रानी थी, यह विदित नहीं है । सम्राट् चन्द्रगुप्तका पुत्र और उत्तराधिकारी बिन्दुसार था । 'राजाबलीकथे' में शायद इन्हींका नाम सिंहसेन लिखा है। इनके अतिरिक्त चन्द्रगुप्तके और कोई संतान थी, यह मालूम नहीं है। इस प्रकार गार्ह स्थिक आनन्दका उपयोग करते हुये भी चंद्रगुप्त निशङ्क नहीं थे। गुप्त षड्यंत्रोंके कारण उन्हें सदा ही अपने प्राणों का भय लगा रहता था। उनके पास प्रचुर धन था और ठाठवाटका सामान भी खूब था। जैन शास्त्रोंसे प्रगट है कि सम्राट चंद्रगुप्त जैन धर्मानुयायी ... थे। वह दिगम्बर जैन मुनियों (निग्रंथश्नमणों) चन्द्रगुप्त जैन थे। 14' की वन्दना-पूजा करते थे और उनको विनयपूर्वक आहारदान देते थे। जैन ग्रन्थों के इस वक्तव्यका समर्थन . १-जराएसो० भा० ९ १० १७६ ॥२-श्रवण पृ०२०। ३-संप्रा. जैस्मा० पृ० १७८ । ४-भाइ० पु. ६५। ५-श्रमण, पृ. ३१ । • ६-माइ० पृ०६६। ७-प्रवण० पृ० २५-४० ।
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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