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श्रुतकेवली भद्रबाहु और अन्य आचार्य। [२११ विजय मादर गोत्रके थे । जब वे ४२ वर्षके थे, तब उनने मुनिदीक्षा ग्रहण की थी। ८६ वर्षकी उमरमें वह युगप्रधान हुये थे
और केवल आठ वर्ष इस पदपर रहकर वी० नि० सं० १५६ में स्वर्गवासी हुये थे।
संभूति विजयके स्वर्गवासी होनेपर भद्रवाहस्वामी संघाधीश ताम्वर शालों में हुए थे। जब वह बयालीस वर्षके थे, तब श्री श्री भद्रवाहु। यशोभद्रसुरिने उनको जैन मुनिकी दीक्षा दी थी। यशोभद्रकी उन्होंने १७ वर्ष तक शिष्यवत् सेवा की थी। फिर वह युगपधान हुए थे और इस पदपर चौदह वर्षतक आसीन रहे थे। वीर निर्वाणसे १७० वर्ष बाद उनका स्वर्गवास हुआ था' उनके उत्तराधिकारी स्थूलभद्र हुए थे। दिगम्बर और श्वेताम्बर मान्यताके अनुसार यद्यपि श्रुतकेवलियोंकी नामावलीमें परस्पर मन्तर है; किन्तु वह दोनों ही भद्रबाहुको अंतिम श्रुतकेवली स्वीकार करते हैं । श्वेतांबर केवल इन्हीं एक भद्रबाहु का उल्लेख करते हैं
और इन्हें प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिरका भाई व्यक्त करते हैं। उनके अनुसार इनका जन्मस्थान दक्षिण भारतका प्रतिष्ठानपुर है।
-पूर्व प्रमाण । २-जैसासं० भा० । वीरवं० प्र० ५ व परि० पृ० ८७.। यद्यपि हेमचन्द्राचार्यने वीर निर्वाण १७० वर्ष बाद भद्रबाहूका स्वर्गवास हुआ लिखा है, परन्तु वह ठीक नहीं प्रतीत होता; जैसे कि पहिले लिखा जाचुका है। उनने स्वयं उनका स्वर्गवास मौर्य सम्र विन्दुपारका वर्णन कर चुकने पर लिखा है । दिगम्बर मतमें वीर नि० से १६२ वर्ष श्रुतकेवलियोंका होना लिखा है। इससे भी यही भाव लिया जाता है कि इस समयमें ही भद्रवाहुका स्वर्गवास होगया था; किन्तु यह मानना . ठीक नहीं जंचता । इस समय वह संघनायक पदसे.विलग होगये होंगे