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________________ १९८] संक्षिप्त जैन इतिहास । नेकी शिक्षा दें । प्रायः प्रत्येक जैन मुनि अपने वक्तव्य के अन्तमें ऐसा ही उपदेश देते हैं और यदि कोई व्यक्ति मुनि न होसके तो उसे श्रावके व्रत ग्रहण करनेका परामर्श देते हैं। मुनि कल्याणने भी यही किया था। किन्तु एक विदेशीके लिये इनमें से किसी भी प्रस्तावको स्वीकार कर लेना सहसा सुगम नहीं था। मुनि मन्दनीस, जो संभवतः संघाचार्य थे, यूनानी अफसरकी इस विकट उल्झनमें सहायक बन गये | उन्होंने मुनि कल्याणको रोक दिया और यूनानी अफसरसे कहा कि 'सिकन्दर' को प्रशंसा योग्य है । वह विशद साम्राज्यका स्वामी है, परन्तु तो भी वह ज्ञान पानेकी लालसा रखता है। एक ऐसे रणवीरको उनने ज्ञानेच्छु रूपमें नहीं देखा ! सचमुच ऐसे पुरुषोंसे बड़ा काम हो, कि जिनके हाथोंमें बल है, यदि वह संयमाचारका प्रचार मानवसमाजमें करें। और संतोषमई जीवन वितानेके लिये प्रत्येकको बाध्य करे। ___महात्मा मन्दनीसने दुभाषियों द्वारा इस यूनांनी अफसरसे वार्तालाप किया था । इसी कारण उन्हें भय था कि उनके भाव ठीक प्रकट नं होसकें। किन्तु तो भी उनने नो' उपदेश दिया था उसका निष्कर्ष यह था कि विषय सुख और शोकसे पीछा कैसे छूटें । उनने कहा कि शोक और शारीरिक श्रममें भिन्नता हैं। शोक मनुष्यका शत्रु है और श्रम उसका मित्र है । मनुष्य अंम इसलिये करते हैं कि उनकी मानसिक शक्तियां उन्नत हों, जिससे कि वे भ्रमका मन्त कर सकें और सबको मच्छा परामर्श देसकें। वे तक्षशिला वासियोंसे सिकन्दरको स्वागत मित्ररूपमें करने के लिये
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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