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सिकन्दर-आक्रमण व तत्कालिन जैन साधु [२९७ अतः इन साधुका शुद्ध नाम ठीक है, जो जैन साधुओंके नामके
समान है।
मुनि कल्याणने इस विदेशीके प्रचण्ड लोम और तृष्णाके चश हो घोर कष्ट सहते हुये वहां माया देखकर जरा उपहासभाव धारण किया और कहा कि पूर्वकालमें संसार सुखी था-यह देश अनानसे भरपुर था। वहां दृष और अमृत आदिके झरने वहते थे, किन्तु मानव समाज विषयभोगोंके आधीन हो घमण्डी और उद्दण्ड होगया । विधिने यह सब सामग्री लुप्त करदी और मनुप्यके लिये परिश्रमपूर्वक जीवन विताना (A life of toil) नियत कर दिया । संसारमें पुनः संयम मादि सद्गुणोंकी वृद्धि हुई और अच्छी चीजों की बाहुल्यता भी होगई ! किन्तु अब फिर मनुष्योंमें असन्तोप और उच्छृङ्खलता आने लगी है और वर्तमान अवस्थाका नष्ट होजाना भी आवश्यक है। सचमुच इस वक्तव्य द्वारा मुनि कल्याणने भोगभूमि और कर्मभूमिके चौथे काल और फिर पंचमकालके प्रारंभका उल्लेख किया प्रतीत होता है।
उनने यूनानी अफसरसे यह भी कहा था कि 'तुम हमारे समान कपड़े उतारकर नग्न होनाओ और वहीं शिलापर मासन जमाकर हमारे उपदेशको श्रवण करो। वेचारा यूनानी अफसर इस प्रस्तावको सुनकर बड़े असमंजसमें पड़ गया था; किन्तु एक जैन मुनिके लिये यह सर्वथा उचित था कि वह संसार में बुरी तरह फँसे हुये प्राणीका उद्धार करनेके भावसे उसे दिगम्बर मुनि होना.. १-ऐइ०, पृ. ७० । २-ऐ४० पृ. ७० ।