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नन्द-वंश। को मंत्रीपद मिला था। इसीका अपरनाम संभवतः राक्षस 'था। धननन्दमें इतनी योग्यता नहीं थी कि वह इतने विस्तृत
राज्यको समुचित रीतिसे संभाल लेगा; यद्यपि उस समय भारत में • वह सबसे बड़ा राना समझा जाता था। यूनानियोंने उसको मगध
और कलिङ्गका राजा लिखा है और बतलाया है कि उसकी सेनामें २ लाख पैदल सिपाही, २० हजार घुड़सवार, २ हजार स्थ और "३ या ४ हजार हाथी थे। यूनानियोंने यह भी लिखा है कि
उसकी प्रना उससे अप्रसन्न थी। उपर कलिंगमें ऐर वंशके 'एक रानाने धननंदसे युद्ध छेड़ दिया। धननन्द उसमें परास्त हुआ
और कलिंग उसके अधिकारसे निकल गया था। इधर चाणिक्यकी सहायतासे चन्द्रगुप्तने भी नन्दपर माक्रमण कर दिया था। नन्दका सेनापति भद्रमाल था। इस युद्ध में भी उसकी हार हुई और उसके साथ ही ई० पू० ३२६ में नंदवंशकी समाप्ति होगई थी। कहते हैं कि इसने ही ननों तीर्थ पञ्चपहाड़ीमा निर्माण • पटना में भराया था।
१-हिलिज. पृ. ४५। २-मुद्रा० नाटकमें नंदराजाके मंत्रीका नाम यही है। इसका भी जैन होना प्रगट है। वीर वर्ष ५ पृ० ३० ।
३-अहिइ० ० ४०-४१। ४-जविओसो. भा० ३ पृ० ४८३ । . ५-मिलिन्द० २११४७ ॥ ६-चीनी लोग नन्दराजाकी मृत्यु ई० पूर्व ३२७ 7 बताते है । ऐरि० भा० ९ पृ० ८७ । ७-अहिइ. पृ० ४६ ।