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________________ १८४] संक्षिप्त जैन इतिहास | उनको प्रतिवुद्ध किया था। हमारे विचारमें यह महापद्म नाम नंद राजाका ही द्योता है । जो हो, इतना स्पष्ट है कि नंदराजा ब्राह्म‘गोंके द्वेषी थे और वह जैनधर्मसे प्रेम रखते थे। उनका जन धर्मानुयायी होना कुछ आश्चर्यजनक नहीं है । इन नव नंदोंके मंत्री निस्सन्देह जैन धर्मानुयायी थे। महापद्म का मंत्री पल्पक नामक था और इसका ही पुत्र अगाडीके नन्दका मंत्री रहा था। महापद्मनन्दमें अपने दादा नन्दवन के समान क्षात्रशक्ति और रणकौशलकी बाहुल्यता थी। उसने नंदराज्यको । विस्तत बनाने के प्रयत्न किये थे। उसने कौशाम्बीको जीतकर वहांके पौरववंशका अंत किया था। गंगा व जमनाको तरा. ईवाले और भी छोटे२ स्वाधीन राज्यों-पांचाल, कुरु आदिको उसने अपने अधिकारमें कर लिया था । इमप्रकार कुशलतापूर्वक वह ई० पूर्व ३३६-३३८ तक राज्य करता रहा था। महापद्मके पहिले महानन्दके वास्तविक उत्तराधिकारी दो पुत्र नन्द महादेव और नंद चतुर्थ कुल ३७४ से ३६६ ई० पूर्वतक नाममात्रको राज्याधिकारी रहे थे। उनका संरक्षक महापद्म था और अन्तमें उसने ही राज्य हथिया लिया था। अतिम नन्द सझल्य अथवा धननन्द था। यह बड़ा लालची अन्तिम-नन्द । ___था। इपका मंत्री सम्टाल जैन धर्मानुयायी था; • जो अन्तमें .मुनि होगया था। इसके पुत्र स्थूलभद्रं और श्रीयक थे। स्थूलभद्र जैनमुनि होगये थे और श्रीय• १-अहि० पृ० ४५-४६ ॥२-केहिइ० पृ० १६४ ॥ ३-हिलिजे० पू०४५। ४-जविओमो०, भ.० १ ० ८९-९० ।५-भाक० भा० ३पृ० ७८-८१॥
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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