________________
अंतिम केवली श्री जम्बूस्वामी। [१७९ सक्ता कि जम्बुम्वामीका निर्वाण स्थान कहां था; किन्तु जैन मान्यता और मथुगके जैन पुगतत्वको देखते हुये मथुगमें उनका मोक्षस्थान होना टीक जंचता है। विपुलाचल पर्वतपर उनने दीक्षा ग्रहण की थी, यह स्पष्ट है। संभवतः इसीपरसे व जिनदासने उनका निर्वाणस्थान भी उसे ही लिख दिया है। कोटकपुर समाधिस्थान कहा जाता है। संभव है, वह केवलज्ञान स्थान हो । वह पुण्ड्वर्द्धन देश कोटिवष नामक ग्राम अनुमान किया गया है जहांसे गुप्त व पालवंशी रानाओंके सिक्क मिले हैं। संभवतः इसी समय अंताकत केवलियों में सर्व अंतिम श्रीधर नामक केवली कुण्डलगिरिसे मुक्त हुए थे। इस समय भगवान महावीरको मोक्ष गये ६२ वर्ष होचुके थे।
श्वेतांवर सम्प्रदायकी मान्यता है कि जम्बू कुमारके समयमें भी लाम्बरीय भगवान पार्श्वनाथकी शिष्य-परम्परा अलग मौजूद फथन। थी और रत्नप्रभसूरि आचार्य पदपर नियुक्त थे। उन्होंने वीरपके मोक्ष जाने के बाद पचहत्तरव वर्ष में ओइपा नगकी चामुण्डाको प्रतियोघ कर कितने जीवों को अभयदान दिया था और वहांके परमार वंशी राजा श्री उपलदेव एवं अन्य लोगों को जैनी बनाकर उपकेश जातिका प्रादुर्भाव किया था। किंतु दि० शास्त्रों का कथन है कि भगवान पार्श्वके तीर्थके मुनि वीर संघ समिलित होगये थे। श्वेतांबरोंके 'उत्तराध्ययनसूत्र' से भी यही प्रगट है। परमार वंशकी उत्पत्ति अर्वाचीन है, इस कारण जम्वृत्वामीके.समय परमार वंशी रामाका होना अशक्य है। १-धीर वर्ष ३ पृ० ३७० १२-अहि. भा० १३.१०.५३११३-श्वेतांबर ६४ वर्ष मानते हैं । जैसा खण्डः वीर: वंशावली १.० ३१.४-जसासं०, खण्ड चीर वंशा० पृ० ३१५-उसू. पृ० १३३:६-नाइ० मा० १-३०.६४-६८।
-
-