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१७८] संक्षिप्त जैन इतिहास । सर्वज्ञ होकर चालीस वर्ष तक जिनधर्मका प्रचार सर्वत्र करते रहे थे।' इनका भव नामकशिप्य प्रख्यात्था । विद्युच्चोर भी महातपस्वी मुनि हुये थे। उनने भी चहुँओर विहार करके धर्मकी मन्दाकिनी विस्तृत की थी। एक दफे मथुरामें उनपर एक वनदेवताने घोर उपसर्ग किया था; जिसमें वह दृढ़परिकर रहे थे । बारह वर्ष तक तप करके वह सर्वार्थसिद्धिमें महमेन्द्र हुये। अर्हदास सेठ समाधिमरण पूर्वक छठवें स्वर्गम देव हुये। जिनमती सेठानी एवं अन्य महिलायें भी मरकर देव हुई थी।
__ यद्यपि जम्वृकुमारका विहार और धर्म प्रचार प्रायः समग्र मन-दशामें देशमें हुआ था; किन्तु ऐपा मालूम होता है कि
धर्मप्रचार। बंगाल और विहारसे उनका सम्पर्क विशेष रहा था। सुधर्मा और जम्वृत्वामी पुण्ड्वर्द्धनमें विशेष रीतिसे धर्मपचार करने आये थे और उपरांत यह स्थान जेनों का मुख्य केन्द्र होगया था। कहते हैं कि जम्बूम्बामीको निर्वाण लाभ भद्रबाहुके जन्मस्थान कोटिकपुरमें हुआ था, किन्तु भगवान सकलकीर्तिके शिष्य व्र जिनदासने उनका निर्वाणस्थान विपुलाचा पर्वत बतलाया है।' उघर दि० जैनों की मान्यता है कि जम्बू-वामी मथुरासे मोक्षधाम सिघारे थे। उनकी इस पवित्र स्मृतिमें वहांपर वार्षिक मेला भी भरता है। भतः निश्चितरूपमें यद्यपि यह नहीं कहा जा
१-उपु० पृ० ७१०; किन्तु एक प्राचीन गाथामें यह समय ३० वर्ष लिखा है। ('अठतीस वास रहिये केवलणाणीय उकिटो) श्वेता. वर ४४ वर्प और कुल आयु ८० वर्षकी बताते है । जैसा सं० खण्ड १ वीर वंशा० पृ. ३ । २-उपु० पृ० ७१० । ३-जम्बू. पृ०६४-६५ । ४-बीर वर्षे ३ पृ० ३७० । ५-पूर्व ब राजा चलीकये-जैहि भा०.११ • १६३९१ ६-जैहिः भा० ११ पृ० ६१९ ।