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२६४] संक्षिप्त जैन इतिहास । . . उधर विबुध श्रीधरकी कथासे नरवाहन रानाका जन सम्बंध प्रगट है; जिसके अनुसार दिगम्बर जैन सिद्धांत ग्रन्थों के उद्धारक मुनि भूतबलि नामक आचार्य वही हुए थे। नहपानका एक विन्द 'भट्टारक' था और यह शब्द जैनोंमें रूढ़ है । तथापि नहपानके उत्तराधिकारियोंमें क्षत्रप रुद्रसिंहका जैनधर्मानुयायी होना प्रगट है।' अतएव नरवाहनका नहपान होना और उन्हें जैनधर्मानुयायी मानना उचित प्रतीत होता है । इस अवस्था पूर्वोक्त पहले दो मतोंके अनुसार वीर निर्वाण शकाव्दसे ४६१ वर्ष अथवा ६०५ वर्ष ५ मास पूर्व मानना ठीक प्रमाणित नहीं होता; क्योंकि जन शास्त्रोंका शकराजा शक संवतका प्रवर्तक नहीं था, वह नहपान था।
तीसरा मत प्रो. जॉर्ड चारपेन्टियरका है; जिस स्थापन निर्वाणकाल ई. प. उन्हाने इन्डियन एन्टीश्वरी मा०४३
४६८नहीं होसका। में किया है। उनके मतसे वीर-निवाण ई० पू० ४६८में हुआ था। उनने अपने इस मतकी पुष्टि में पहले ही दिगम्बर और श्वेताम्बरोंके उस मतके निरापद होनेमें शक्षा की है, जिसके अनुसार सन् १२७ ई० पूर्व वीरनिर्वाण माना जाता है किन्तु इसमें जो वह दिगम्बरों के अनुसार विक्रमसे ६०५ वर्ष पूर्व वीरनिर्वाण बतलाते हैं, वह गलत है। किसी भी प्राचीन दिगम्बरग्रंथ विक्रमसे ६०५ वर्ष पहले वीर निर्वाण होना नहीं
१-सिद्धांतसारादि संग्रह, पृ. ३१६-३१८ । २-इ०, पृ० १०३ । ३-इंऐ०, भा० २० पृ०:३६३ । ४-त्रिलोकसार गार ८५०-त्रिलोकसारके टीकाकार एवं उनके वादके लोगोंको शकराजासे मतलब विक्रमा- : दित्यसे भ्रमवश था। असलमें वह नहपानका द्योतक है.!; ... :.:.."