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भगवान महावीरका निर्वाणकाल
प्रकट है।' इन बातों का सादृश्य जेनोंके उपरोक्त उल्लेखसे है। साथ ही आजकल जो नहपाना अंतिम समय ई० पूर्व ८२ से १२४ ई० तक माना जाता है वह भी जनोंकी प्राचीन मान्यतासे टीक बैठता है। क्योंकि उनके अनुसार वीर निर्वागसे ४६१ से ६०५ वर्ष बाद तक शक राना हुआ था । अब यदि वीर निर्वाण ई० पूर्व ५४६ में माना जाय, निसका मानना टोक होगा, जैसे हम अगाड़ी प्रगट करेंगे, तो उक्त समय ई० पूर्व ८४ से ई. ६० तक पहुंचता है । चै के यह समय शक रानाके उत्पन्न होने का है । इसलिये इसका सामञ्जम्ध नहपानके उपरोक्त अंतिम ममबसे करीबर टीक बैठता है। इसके साथ ही नहपानमा जैन सम्बंध भी प्रगट है। जैन शास्त्रों में नहपानका उल्लेख नरवाहन, नरसेन, नहवाण और नभोवारण रूपमें हुआ मिलता है। 'त्रिलोकपनति में उसका उल्लेख नरवाहन रूपमें हुमा है। एक पट्टावली में उन्हें 'नहवाण' के नामसे उल्लिखित किया है। इस नाममें नहपानसे प्रायः नाम मात्रका अन्तर है। इसी कारण श्रीयुत् काशीप्रसाद नायमवा और पं० नागमनी प्रेमीने नरवाहनको नहपान ही प्रगट किया है।
१-माप्राग०, भा० १ पृ० १२-11 २-जेह, भा. १३० ५३३-पदावर शायद यह आपत्ति हो सकती है कि यदि त्रिलोकप्रजाति के कर्ताको शगजा नामसे नहपानका डोष करना था, तो उन्हें ९३९४ गाथाओमें शगजाके स्थानपर नाबाहन नाम लिखना उचित था! . इसके उत्तरमें हम यही कहेंगे कि त्रि०प्र०' के रचना काल के समय इस यातका पता लगाना कठिन था कि नहपान और शकराजा एक ही थे। विशेषके लिये देखो वीर वर्ष ६ । 3-ऐ०; भा० ११० २५१ । ४-जैसा #०, भा० भ० ४०२१११५-हि० मा ०५३४॥
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