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संक्षिप्त जैन इतिहास |
करके उसे भी जीवंघरने व्याहा था । वणिकपुत्र प्रीतंकरका विवाह राजा जयसेनकी पुत्री के साथ हुआ था । विवाह सम्बन्ध करनेमें जिस प्रकार वर्णभेदका ध्यान नहीं रक्खा जाता था, वैसे ही धर्मविरोध भी उसमें बाधक नहीं था । वसुमित्र श्रेष्ठो जैन थे; किन्तु उनकी पत्नी धनश्री अजैन थी। साकेतका मिगारसेठी जैन था किन्तु उसके पुत्र पुण्यवर्द्धनका विवाह वौद्ध धर्मानुयायी सेठ धनंजयकी पुत्री विशाखासे हुआ था । सम्राट् श्रेणिक के पिता उपश्रेणिक ने अपना विवाह एक भीलकन्यासे किया था ।
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भगवान महावीरके निर्वाणोपरान्त नन्दराजा महानंदिन जैन थे । इनकी रानियोंमें एक शूद्रा भी थी; जिससे महापद्मका जन्म हुआ थी । चम्पाके श्रेष्टी पालित थे । इनने एक विदेशी कन्यासे विवाह किया था। प्रीतंवर सेठ जब गये थे, तो वहांसे एक राजकन्याको ले आये थे; जिसके साथ
विदेश में
धनोपार्जन के लिये
उनका विवाह हुआ था । इस कालके पहले से ही प्रतिष्ठित जैन पुरुष जैसे चारुदत्त अथवा नागकुमारके विवाह वेश्या - पुत्रियोंसे हुये थे । सारांशतः उस समय विवाह सम्बन्ध करनेके लिये कोई I बन्धन नहीं था । सुशील और गुणवान् कन्या के साथ उसके उपयुक्त वर विवाह कर सक्ता था | स्वयंवरकी प्रथाके अनुसार विवा - हको उत्तम समझा जाता था ।
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१ - क्षाच्० लंब ५ श्लो० ४२ - ४९ । २ - उपु० पर्व ७६ श्लो० ३४६३४८ । ३-आक० भा० ३ पृ० ११३ | ४- भमनु० पृ० २५२ । i ५, आक० भा० ३ पृ० ३३ । ६ वीर वर्ष ५ पृ० ३८८ । ७ -उलू०
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२१ । ८-उ० पु० ७३३ ।