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________________ २३४] संक्षिप्त जैन इतिहास । भगवान महावीरके संघका तीसरा अंग उदासीनव्रती श्रावव्रती श्रावक और कोंसे अलंकृत था। इनकी संख्या दिगम्बर श्राविका संघ । मैन शास्त्रों में एक लाख बताई गई है और यह श्वेत वस्त्र धारण करते थे। इन श्रावकोंमें मुख्य सांखस्तक थे। इनके विषयमें कुछ विशेष विवरण प्राप्त नहीं है। वैशाल.के सेनापति सिंह भी उनमें प्रख्यात हैं। वह संभवतः सम्राट् चेटकके पुत्र थे । उनको जैनधर्ममें दृढ़ श्रद्धान था । मुनियोंको आहारदान व उनकी विनय वह खुव किया करते थे । ( भमबु० ४० २३१ ) संघके अन्तिम अंगमें तीनलाख श्राविकायें थीं। यह भी व्रती और उदासीन थीं। इनमें मुख्य सुल्सा और रेवती थीं। बौद्धशास्त्रों में नंदोतरा नामक एक जैन श्राविकाका उल्लेख है। जिससे यह स्पष्ट है कि जैन संघमें जो श्राविका थी, वह अव्रती गृहस्थ श्राविका ओंके अतिरिक्त उदासीन गृहत्यागी ब्रह्मचारिणीं थीं। जैन संघ स्त्रियोंके लिये आर्यिका और उदासीन श्राविकाके दर्ने नियुक्त थे. जिनमें सर्वोच्च आर्यिका पद था, यह भी बौद्धशास्त्रोंसे सिद्ध है। उपरोक्त उदासीन श्राविका नन्दोत्तराको जन्म कौरवोंके राज्यमें स्थित कम्मासदम्म ग्रामके एक ब्राह्मण कुलमै हुणा था। उसने जैनसंघमें रहकर शिक्षा ग्रहण की थी और अन्ततः वह उन्हीके संघमें सम्मिलित होगई थी। वह अपनी वादशक्तिके लिये प्रख्यात् थी और. सर्वत्र संघसहितं विहार करके वाद करती थी। बौद्धाचार्य महामौद्लायनसें भी उसने शास्त्रार्थ किया था। इसी प्रकार और • भम० पृ. १२० । २-हरि० पृ. ५७९.। ३-भमपृ २५९-२६ । भमबु पृ० २५८ ।'
SR No.010471
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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