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संक्षिप्त जैन इतिहास |
जैन मुनि होगया । ५०० पुत्र भी अपने पिता के साथ मुनि हो गये । गर्दमने श्रावक व्रत ग्रहण किये और वह उडूदेशका राजा हुआ इसी प्रकार कितने ही अन्य देशों के राजाओं और भव्य पुरुषों को सन्मार्गपर लाकर सुधर्मास्वामी ने भी मोक्ष प्राप्त किया था । इस। समय श्रुतकेवली जम्बूकुमार केवलज्ञानी हुए थे ।
उठे गणधर मंडिकपुत्र भी ब्राह्मण वर्णी थे। इनको मंडितठे गणधर पुत्र मौण्ड अथवा मांडव्य भी कहते थे । इनका 1 मण्डिलपुत्र | गोत्र वशिष्ट था और यह मौर्थ्यास्य नामक देशमें जन्मे थे । इनके पिता ब्राह्मण घनदेव और माता विजया थी । इनकी आयु ८३ वर्षकी थी और इन्होंने भगवान महावीर के जीवमें ही मोक्षलाभ किया था 12
मौर्यपुत्र सातवें गणधर कश्यप गोत्री थे। इनका जन्म स्थान भी मौर्या देशमें था और इनके पिताका नाम मौर्यकथा | जैन शास्त्र इनको भी ब्राह्मण बतलाते हैं । किन्तु इनकी जन्मभूमि, इनके पिता और इनका नाम 'मौर्य:वाची है; जो कुल प्रत्यय नाम प्रगट होता है । उबर मौर्यदेशकी अपेक्षा सम्राट् चन्द्रगुप्तका मौर्यक्ष भी होना प्रगट है । सतः संभव है यह मौर्य पुत्र भी क्षत्री हों । इनका काश्यपगोत्र भी इसी चातका द्योतक हैं: क्योंकि उपरान्तके जन लेखकोंने मौर्योको सूर्यवंशी लिखा है; जिसमें काश्यपगोत्र मिलता है । जो हो, मौर्यपुत्र गणधर एक प्रतिठित पुरुष थे । उनकी आयु ९९ वर्षकी थी और उनका निर्वाण । भगवानकी - जीवनावस्था में हुआ था ।
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सातवें गणधर मौर्यपुत्र
१- मा० भा० पृ० १८९ । २८ - जैशे० पृ०७३ - नृजेश० पृ०७।४-क्षत्रीक्लैन्स० २०५। ५- राइ० भा० १ पृ. ६० । ६ ब्रुजैश० पु.