________________
११८]
संक्षिप्त जैन इतिहास |
अटल भक्ति इतने में ही समाप्त नहीं हुई थी। उसने भगवान के दिव्य संदेशको और उनके महान् व्यक्तित्व के महत्वको चहुंओर फैलानेके लिये इन बातोंको चित्रबद्ध ( Pictographic ) भाषामें प्रकट करनेवाले सिक्के ढाले थे । किन्हीं विद्वानोंको संशय है कि सिक्कोंका सम्बन्ध शायद ही धार्मिक बातों से हो; किन्तु यह बात नहीं है। आज भी हम किन्हीं राजाओंके प्रचलित सिक्कोंपर त्रिशूल व गायका चिन्ह देखते हैं; जो उनकी साम्प्रदायिकता प्रकट करनेके लिये पर्याप्त हैं । प्राचीन काल के राजाओं के भी ऐसे सिक्के मिले
1
जिनमें लक्ष्मी, त्रिशूल आदि धार्मिक और साम्प्रदायिक भेदको प्रकट करनेवाले चिन्ह हैं । फिर उस समय शास्त्रार्थका चैलेश देनेके लिये अपनी मुद्रायें आदि रखनेका रिवाज था । इस दशा में उनपर साम्प्रदायिक चिन्ह होना अनिवार्य था । और यह भी रिवाज उस समय था कि व्यापारी आदि लोग अपने निजी सिक्के ढालते थे;+ जिनपर उनके वंशगत मान्यताओं के चिह्न होना उचित ही हैं।
सचमुच भारत में अज्ञात कालसे साम्प्रदायिक महत्व दिया जाता रहा है । जैन तीर्थंकरोंके चिन्ह खास मूर्तियों से भी अधिक महत्व रखते हैं? और उनमें से एकाध तो इतिहासातीतकालके पुरातत्त्वमें मिलते हैं। ऐसी दशा में ऐसा कोई कारण नहीं, जिससे कहा. जासके कि वीरप्रभुके उपदेशको प्रकट करनेवाले सिक्के नहीं ढले
"
~. १- भूम० पृ० २४५-२४६ व वीर वर्ष ३ पृ० ४४२ व ४६७ । २- भाप्रारा० भा० - २ - सिक्का: नं०, २५ । * उद० ६ । + रेपसन, इंडियन क्कायन्स, पृ० ३ । ३-३० भा० ९ पू० १३८ । ४- प्री० हिस्टोरीकल इंडिया पृ० १९२-१९३ ।