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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [१९७
भगवानको निर्वाण लाभ हुआ सुनकर आसपास के प्रसिद्ध राना लोग भी पावापुर के उद्यानमें पहुंचे थे और वहांपर दीपोत्सव मनाया था। 'इल्पसूत्र में लिखा है कि " उस पवित्र दिवस जब पूज्यनीय श्रमण महावीर सर्व सांसारिक दुःखोंसे मुक्त होगए तो शाशी और कौशल के १८ राजाओंने, ९ मल्लराजाओंने और ९ लिच्छिवि राजाओंने दीपोत्सव मनाया था। यह प्रोषधका दिन था और उन्होंने पहा-ज्ञानमय प्रज्ञाश तो लुप्त होचुका है, आओ भौतिक प्रकाशसे जगतको दैदीप्यमान बनावें । ""
भगवान महावीरनीका निर्वाण होगया। भारतमेसे ज्ञानका भगवान महावीर के साक्षात् प्रकाश विलुप्त होगया। तत्कालीन
पविन स्मारक। जनताने इस दिव्य अवसरकी पवित्र स्मृतिको चिरस्थाई बनाने में कुछ उठा न रक्खा । उसने भगवान के निर्वाणस्थानपर एक भव्य मंदिर और स्तुप भी बनाया था, जहां आज भी भगवानके चरण-चिन्ह विराजमान हैं। साथ ही भक्तवत्सल प्रमाने एक राष्ट्रीय त्यौहार 'दीपोत्सव' अथवा दिवालीकी सृष्टि इन महापुरुषके पावन स्मारकरूप की थी। इस त्यौहारको आज भी समस्त भारतीय पारस्परिक भेद-भावनाको भूलकर एक-मेक होजाते हैं और प्रेममई दिवाली मनाते हैं। इसके अतिरिक्त तत्कालीन ननताने भगवान के निर्वाणकालसे एक मन्द प्रारम्भ किया था जैसे कि बालीग्रामसे प्राप्त और अजमेर अजायबघरमें रक्खे हये वीर निर्वाण सं० ८४ के प्राचीन शिलालेखसे प्रगट है। जनताकी - . १-Js. I,d. 266. २-भम० पृ० १९० । ३-हरि० १९-३३० व -२१-६६ । ४-भम० पृ. २४४-२४५ ।
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