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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर । [१११
भाव यह है कि ऋभदेव और महावीर भगवानने सामा'विकादि पांच प्रकारके चारित्रका प्रतिपादन किया है, जिसमें छेदोपस्थापनाकी यहां प्रधानता है । शेष बाईस तीर्थंकरोंने केवल ही केवल सामायिक चारित्रका प्रतिपादन किया है। इस शासन भेदका कारण आचार्यने बतलाया है कि "पांच महाव्रतों (छेदोपस्थापना ) का कथन इस चनहसे किया गया है कि इनके द्वारा सामायिकका -दूसरोंको उपदेश देना, स्वयं अनुष्ठान करना, टथक् २ रूपसे भावनामें लाना सुगम होजाता है | आदि तीर्थ में शिष्य मुश्किलसे शुद्ध किये जाते हैं; क्योंकि वे अतिशय सरल स्वभाव होते हैं । और अंतिम तीर्थ में शिव्यजन कठिनतासे निर्वाह करते हैं; क्योंकि वे अतिशय वक्र स्वभाव होते हैं। साथ ही इन दोनों समयोंके शिष्य स्पष्ट रूपसे योग्य अयोग्यको नहीं जानते हैं। इसलिये आदि और अन्त तीर्थों में इस छेदोपस्थापनाके उपदेशकी जरूरत पैदा हुई है ।"
इसी प्रकार ऋषभ और महावीरजीके तीर्थके लोगोंके लिये अपराधके होने और न होने की अपेक्षा न करके प्रतिक्रमण करना अनिवार्य होता; किन्तु मध्य बाईस तीर्थंकरोंका धर्म अपराधके होनेपर ही प्रतिक्रमणका विधान करता है । इस तरह तीर्थंकरोंका यह शासनभेद क्रप, क्षेत्र, काल, भावके अनुसार है और मूलभाव में परस्पर कुछ भी विरोध नहीं रखता । सब ही तीर्थंकरोंका महान् व्यक्तित्व और उनका धर्म प्रायः एक समान होता है ।
१- मूला० ७-३२ । २-मूला० ७।१२५ - १२९ विशेषके लिये देखो जैन हितेपी भा० १२ अंक ७-८ ।