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१.०८] संक्षिप्त जैन इतिहास । वह सफल हुये थे। त्रिलोक वंदनीय परमात्मा कहकर बान जगत उनको नमस्कार करता है।
इसप्रचार भगवान महावीरने मोक्षमार्गको निर्दिष्ट करते हुये मनुप्योकी स्वाधीनताका पाठ पढ़ाया था। उन्होंने बतला दिया कि अपने आप पर विश्वास करो। और सच्ची श्रद्धाके साथ अपने आपका और अपने चहंओरके पदार्थोश यथार्थ ज्ञान प्राप्त करो। जिस समय मनुष्यको सचे ज्ञानका भान हो जायगा, वह कभी भी असत्प्रवृत्ति में लीन नहीं होगा। भोगविलास उसे नीरस जंचेंगे और त्यागके कार्य बड़े मीठे और सुहावने । बस उपका चारित्र यथार्थ और निर्मल होगा। भगवान यह अच्छी तरह जानते थे कि मनुष्यमात्रके लिये यह संभव नहीं है कि वह उनके समान ही एकदम रसीली रमणी और राजसी भोगसामग्रीको पैरोंसे टुकरा कर नीरसयोग और महान त्यागके बीहड़ मगचा पथचर बन जावे। और वह यह भी समझते थे कि गृहन्यजीवन में निरे योगकी शिक्षासे भी काम नहीं चल सका है। इसीलिये भगवानने दो प्रकारके धर्म मार्गचा निरूपण किया था। पहला मार्ग तो उन निस्टही साधुओंके लिये बतलाया था, जो उसी भवसे मोक्षसुख पानेके लालसी हों और दूसरा उसीका अपर्याप्तरूप गृहस्थों के लिये निर्दिष्ट किया था। दोनों मार्गवालोंके लिये अहिंसा, सत्य, पचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रतोंका पालना आवश्यक बतलाया था। साधुलोग इन 'ब्रतोंको पूर्णरूपसे पालते हैं; किन्तु एक गृहस्थ इनको एक देश
अयोत मांशिवरूपमें व्यवहारमें लाता है। . . एक मुनि प्रत्येक दशामें मन वचन काय पूर्वक पूर्ण अहि