________________
ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [१०५
था, उसी समय बड़े जोरोंका आंधी-पानी आया था और नांवके 'हवते २ उनने अपने ध्यानवलसे केवलज्ञान विभूतिको प्राप्त करके मोक्ष सुख पाया था। इनके अतिरिक्त भगवानके भक्त विद्याधर लोग अवश्य ही विदेशोंके निवासी थे । अतः यह स्पष्ट है कि भगवान महावीरनीका उपदेश संपूर्ण आर्यखण्डमें हुआ था, जो वर्तमानकी उपलब्ध दुनियासे कहीं ज्यादा विस्तृत है।
ज्ञातपुत्र महावीरने ठीक तीस वर्षतक चारोंओर विहार करके भगवान महावीरका पतितपावन सत्यधर्मका संदेश फैलाया था। उपदेश अर्थात् सत्य सदासे है और वैसा ही रहेगा।
जैनधर्म। भगवान महावीरने भी उसी सनातन सत्यका प्रतिपादन अपने समयके द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके अनुसार किया था। उन्होंने स्पष्ट प्रकट कर दिया था कि केवल थोथे क्रियाकाण्डद्वारा अथवा वनवासी जीवनमें मात्र ज्ञानका माराधन करके कोई भी सच्चे सुखको नहीं पासक्ता है। और यह प्राकृत सिद्धान्त है कि प्रत्येक प्राणी सुखका भूखा है। सांसारिक भोगोपभोगकी सलौनी सामग्रीको भोगते चले जाइए किन्तु तृप्ति नहीं होती है । वासना और तृष्णा शान्त नहीं होती, मनुष्य अतृप्त और दुखी ही रहता है। फलतः भोगोपभोगकी सामग्री द्वारा सच्चा सुख पालेना मसंभव है। उसको पालेने के लिये त्यागमय जीवन अथवा-निवृत्तिमार्गका अनुसरण करना मावश्यक है। भगवानने उच्च स्वरसे यही कहा कि सुख भोगसे नहीं योगसे मिल सका है। वासनाका क्षय हुये बिना-मनुप्यको पूर्ण और अक्षयसुख नहीं होसक्ता । त्यागमई
मा: भा० २ पृ. २४३ । '