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१०४] संक्षिप्त जैन इतिहास । नामक वैदिक ग्रन्धके आधारसे जैनोंका उल्लेख किया है। उपमें भगवान पार्श्वनाथ और महावीनी इन अंतिम दो नीधरोंचा उल्लेख 'जिन' 'भईन अथवा 'महिमन' ( महामान्य ) पर हुआ। उक्त माने लिखा है कि साईन'ने चारों ओर विचार किया था और उनके चरणचिद्र दा दूर देशों में मिलने हैं। मंत्रा, श्याम, मादिमें इन चरणचिन्होंकी पूजा भी होती है। पारस्य, सिरिया (Srria) और ऐशिया भव्यमें 'महिमद (महामान्य-महावीरजी) के मारक मिलते हैं। मित्रो नमनन' trenion) की प्रसिद्ध मृति महिमन् ' ( महामान्य ) की पवित्र स्मृति और आइरके लिये निर्मित हुई थी। अतः इन उल्लेखों में भी भगवान महाशका भारतेवर देशोंमें विहार और धर्म प्रचार आना मिह है। जैन शास्त्रों में कितने ही विदेशी पुलांचा वर्णन मिलता है. जिन्होंने जैनधर्म धारण त्रिया था। आईक नामक यदन अथवा पारम्यदेशः चामी गजकुमारका उडेख र होचुधा है । उसी तरह यूनानी लोगों (येवाओं) का भगवान महावीरजोका मक्त होना प्रष्ट है। फणिक अथवा पणिक (Phonecin) देशके प्रसिद्ध व्यापारियोंमें जैनधर्मकी प्रवृत्ति होनेके चिह्न मिलते हैं। भगवानका ममोशण जिस समय वहां पहुंचा था, उस समय एक 'पणिक व्यापारी उनले दर्शनोंको गया था | भगवानका उपदेश सुनकर वह प्रति. बुद्ध हुआ था और जैन मुनि होकर वीर संघके साथ भारत माया था। जिस समय वह गंगानदीको नावपर बैठे हुये पार कर रहा
१-ऐरि० मा० ३, पृ० १९३-1९४ । २-पा० पृ. ९७-१९॥ ३-एरि० मा० ३, १९६-१९९ । ४-भपाः पृ० २०९-२०२ ।