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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [८५ सार्थकता अथवा औचित्यकी ओर ध्यान ही नहीं देते थे। भगवान महावीरका धर्मप्रचार ठीक वैज्ञानिक ढंगपर होता था। उनके निकट निज्ञासुकी शंकाओं का अन्त एकदम हो जाता था। इसका कारण यही था कि वह त्रिकाल और त्रिलोकदर्शी सर्वज्ञ थे। उन्होंने आत्मा और लोकके अस्तित्व एवं कर्मवादको पूर्णतः स्पष्ट प्रतिपादित करके सद्धांतिक जिज्ञासुओंकी पूरी मनः संतुष्टि कर दी थी। उनने वनस्पति, पृथ्वी, जल, अग्नि वायु आदि स्थावर पदार्थोंमें भी जीव प्रमाणित किया था और कर्मवर्गणाओंका अस्तित्व और उनका सुक्ष्मरूप प्रकट करके अणुवादका प्राचीन रुप स्पष्ट कर दिया था। इसके विपरीत म० बुद्धने यह भी नहीं बतलाया था कि आत्मा है या नहीं। उनने आत्मा, लोक, कर्मफल मादि सैद्धांतिक बातोंको अधुरी छोड़ दिया था। इस अपेक्षा विद्वजन म० बुद्ध धर्मको प्रारम्भमें एक सैद्धांतिक मत न मानकर सामानिक क्रांति ही मानते हैं। दोनों ही धर्मनेताओंने यद्यपि अहिंसातत्त्वको स्वीकार किया है; परन्तु जो विशेषता इस तत्वको भगवान महावीरके निकट प्राप्त हुई, वह विशेषरूप उसे म०बुद्धके , हाथोंसे नसीव नहीं हुआ। ___ म० बुद्धने अहिंसा तत्त्वको मानते हुये भी मृत पशुओंके मांसको ग्रहण करना विधेय रक्खा था और इसी शिथिलताका आज यह परिणाम है कि प्रायः सर्व ही बौद्ध धर्मानुयायी मांसभक्षक मिलते हैं। किन्तु जैनधर्मके विशिष्ट अहिंसा तत्त्वसे प्रभावित - १-ममबु० पृ० ११८-१२० । २-कीय, बुद्धिस्ट फिलासफो - १२ । ३-लामाई पृ० १३१ ।