________________ जैन धर्म { लेम्बक-पूज्य श्री 108 प्राचार्य विद्यालंकार श्रीहीराचन्द्र मूरिजी महागज-काशी ] पक्षपाता न ये बीरे, न द्वेषः कपिलादिषु / युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्य परिग्राः / / -हरिभरमूरि १-जन-धर्म क्या है ? श्राम धर्म को जैन धर्म कहते हैं, गगदंप की विजय करने पर प्रान्मा स्व स्वरूप में प्रार होती है, उमी भागमभाव में प्राने के लिये ही धार्मिक नियम. वन, अनानादि है। ग्राम स्वभाव हो को प्रारम धर्म कहते हैं, जिसके गुण हैं-ज्ञानोपयोग, दशनी पयोग, चारित्र, न, वाय आदि / पुदगलामकिसे ही प्रामा परमभाव में प्रामक होती है. इमम बम घबरा जान नही मानी, हम प्रयापन जीवों को 'वहिगामा किया जिमको जैन परिभाषा में मध्यायी और वैदिक परिभाषा में उम' को मुद्दामा कहते हैं। श्री जावों का मंमार है. मुनि का मार्ग साप का बाप किया श्रात्मज्ञान है। सबभाव किंवा स्वधर्म में स्थिरता ही को धर्म पालन करते हैं। यही शान्ति का प्रपन धम है। जिनपर का उपदिष्टहीने में पी को जन-धर्म कहो।